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प्रस्तुत पाल्य की अपारक-संकलक हैं श्रमण सागर । आप प्रस्तुत कृति के कर्वायता के साथ छाया की पाति तीस वर्ष तक रहे और मुनिश्री की पूर्ण चर्या के नियामक, संयोजक और संरक्षक थे। आप स्वयं कवि. इतिहासकार और संस्मरण लेखक हैं। इतिहास की जब आप बातें सुनाते हैं तब सुनने वाले को प्रतीत होने लगता है कि श्रमणजी संभवतः उस समय वहीं थे और घटना को देख रहे थे। पर यह केवल एक आभास ही है। आप जिस भाव-भाषा में सुनाते हैं, वह स्वयं विशिष्ट होती है और श्रोता को घटना से एकात्म कर देती है। प्रखर बुद्धि के धनी श्रमण सागर राजस्थानी और हिन्दी में गीत भी लिखते हैं, जिनका गुंजारव दीर्घकाल तक होता रहता है।
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