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पत्र संख्या ३
भीनासर वि० सं० २००० मिगसर सुदी ११
दोहा
हृदय-कमल विकसावसी, देख्यां तुझ मुख भान । आनन्द अनुपम जे हुसी, ते जाण भगवान ॥१॥
परम पूज्य महाराज रै, श्री चरणां अनुरक्त । सुखसाता पूछ सुखद, बड़बंधव विधियुक्त ॥२॥
देव सुमंगल दृष्टि स्यूं, बहुत-बहुत आनन्द। वरतै, चाहूं आप री, करुणा वदना-नन्द ! ॥३॥
वत्सलता चिरंकाल तक, चावै है श्री-संघ । पावो जग मै जय-विजय, पग-पग पर रस-रंग ॥४॥
भ्रात ! बाट आगमन की, देखू मै दिन-रैन । सुख-संवाद सुण्यां हुवै, चित मैं 'चम्पक' चैन ॥५॥
भक्ति-पत्र के रूप मै, भेजूं दूहा पांच । आंख पांख 'चम्पक' तुंही, तुंहि चूगो तुंहि चांच ॥६॥
पद्यात्मक पत्र १६६
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