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महाव्रतां रा २२५ भांगा
करण जोग स्यूं कर गुणां थावर पांचां संग। पंचेन्द्रिय विकलेन्द्रियां प्रथम इक्यासी भंग ॥१॥ क्रोध, लोभ, भय, हास्य स्यूं नवगुण कर नतशीस । दूजे महाव्रत रा बणै औ भांगा छत्तीस ॥२॥ अप्पं बहुवं अणुथुलं चित्त अचित्तमतान्त। तीजै महाव्रत रा बणे भांगा चोपन शान्त ।।३।। सप्त वीस चोथे गुणो देव मिनख तिर्यंच । मिश्र अचित्त सचित्त स्यूं करो पांचवें संच ॥४॥
५४ २७-२७ इक्यासी छत्तीस मिलाल्यो चोपन दो सतवीस ।
२५
'चम्पक' भांगा महाव्रतां रा मैं दो सौ पच्चीस ।।५।।
चौबीस तीर्थकरां री पहचाण
गीतक
वृषभ' हाथी' अश्व' बन्दर क्रोच' कमल' रु स्वस्तिक', शशि मगर' श्रीवत्स गेंडो" महिष शूकर" श्येनक"। वज्र" मृग अज" और नंद्यावर्त कलश" रु कूर्म" स्यूं, नील-उत्पल" शंख फणधर सिंह" चीन्हों मर्म स्यूं ॥१॥
फुटकर फूल
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