SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२ गिरतोड़े नै थाम र चम्पा, चेप टूटतोड़े ने, फूंक दूखते फोड़े रै दे, सींच सूखतोड़े ने ॥ आप रै आखरी सांस ताई बै रोवतां नै हंसाया, टूटेडा नै सांध्या, आथडेड्या नै हाथ रो स्हारो देय देय ऊभा कऱ्या अर बिछड़ेड़ा ने पाछा मिलाया। मिनख पण री ऊंचाई, दिल री गराई अर हिवड़े री कंवलाई रो ई दूसरो नांव हो-'भाईजी महाराज'। भाईजी महाराज खाली कंवला ही कंवला को हा नी। आपरो नेम-धरम निभाण मैं बै घणा। करड़ा भी हा । बै आप रै गण अर गणी री सदा जागरूकता स्यं आराधना करी । 'गलै सुदी गण मैं गड्यो रह 'चम्पक' पग रोप'-ओ बांको करार हो। पूज्य कालूगणी रो आप पर इत्तो पतियारो हो के बै आपरै मनचीत्या युवराज री सारणा-वारणा रो काम आपने ही सूंप्यो । मुनि तुलसी रै ग्यारै बरसां रे खिण खिण रा आप पैरेदार रहा। जद संसार लेखे छोटो भाई गुरु री गिट्टी पर बैठ ग्यो तो आप पूरी भगती स्यूं बांरी आराधना करी। बां रै पोढ़ायां पैली आपरी आंख्यां मैं कदेई नींद कोनी घुलण दी, बान्ने आहार करायां बिना आप रै मं मैं अन्न रो दाणों को घाल्यो नी । बै ई बात री पूरी ख्यांत राखी के कोई श्रावक आचार्य तुलसी रै चरणां मै आय नै आपरै रूंरूं स्यूं राजी होयां बिना नई जावै । संघ में कोई साध रै असाता हो जांवती तो आप बी रै तन-मन री सेवा साधण मै की उठा' र को राखता नी । बै ग्लान साधवां री चित्तसमाधि रै खातर बांटा भाई, बैद' र सेवक-सो की बण जांवता । 'सेवाभावी' विरद नै सारथक करणियो इयांलको पर उपकारी मिनख धरती पर कोई बिरलो ही आवै।। ___'आसीस' मैं भाईजी महाराज रा घणा मरजीदान सन्त ‘सागर-श्रमण' बांरा कह्योड़ा दूर्वा, सोरठां अर कवितावां रो संगै कर्यो है। भाईजी महाराज आपनै कवी कोनी मानता, बै कविता लिखण सारू कविता लिखी भी कोनी । मन में कोई लैर आंवती तो बा शब्दां रै सांचै मैं ढ़ल-ढल कविता रो रूप ले लेंवती। कविता लिखणो कोई कवयां रो काम ही कोनी . घुड़दौड़ मैं तो __ सगलाइ घोड़ा दोड़े दौड़े जकां मै, कै सगलाइ ओड़े-जोड़े कोई बछेडियो सारै कर सरपट नीसरे जद बूढ़े को भी मन बढ़ जाव जोस चढ़ जावै॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy