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गण-गणी में जो गर्क, घुलो मिलो बां मै रलो। संकीलो सम्पर्क, समकित खोवै साधकां !॥२२॥
गुण गिरवा गम्भीर, गाजे पण गरज नहीं। तीखा ताना-तीर, शोभै कोनी साधकां !॥२३॥
गलती, गड़बड़, गेस, गमगीनी, गप, गन्दगी। पड़े न दाबी पेस, साहमी आसी साधकां ॥२४॥
घणो करै घमसाण, घर मै घुस घुसपेठिया। जाण बण अणजाण, सूदा दीसै साधकां !।२५।।
घसपस घाल घणेर, ओछां स्यूं आछो नहीं। कोरो दीसै केर, सीदो फाटै साधकां!॥२६॥
घर मै घर री बात, ढक कर राखो ढंग स्यूं। स्याणप री शुरुआत, सीख्यां सरसी साधकां!।२७॥
चाल चुगल री चांक, छांनी रहै न छिबकली। ईर्ष्यालू री आंख, सटकै समझो साधकां!।२८॥
चमचा जावै चाट, माल मसालो मिनट मै। सूखो सपटम पाट, सिद्धांती रहै साधकां !।२६॥
चटकै जावै चेंट, चींट्यां चीणी नै चुटण । खारो, खरो रु खेंट, सूंघे कोइ न साधकां!।३०॥
छोड़ सुधा रो स्वाद, छेक अही-विष जो छ । अक्कल रो उन्माद, सदा सिदासी साधकां!॥३१॥
छद्मस्था री छोल, छठ गुणठाणे छलै। पण, गण-गालागोल, सहणे सके न साधकां!।३२॥
साधक-शतक १०६
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