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सोरठा-छन्द
ॐ कार अविकार, प्रणव-बीज सां स्यं सिरै। निराकार साकार, सब मंत्रां मै साधकां ॥१॥
'अ-सि-आ-उ-सा' मन्त्र, महाप्रभाविक मांगलिक । तेज तरुणतम तन्त्र, साधो सुधमन साधकां!।२।।
'अ-भी-रा-शि-को' जाप, जयाचार्य रो जागतो। शमन करण संताप, जपो जतन स्यूं साधकां!।३॥
अर्हम् अहम् एक, अगर लीनता लागज्या। विकसित हुवै विवेक, सब कुछ सधज्या साधकां!।४॥
अहम् है आदर्श, अन्तर अहम् अहम् मै । रेस रेफ उत्कर्ष, सुधरै बिगड़े साधकां ॥५॥
अकलदार अहंकार, फटकणदै न पडोस मै। भारी विद्या-भार, सहणो दोरो साधका !॥६॥
इष्ट देव अरहन्त, है आपां रै एकही। दूजां नै धोकन्त, सरधा डोलै साधकां!७॥
इज्जत और इमान, दोनं दोरा राखणा। सहज मान-मम्मान, सोहरो कोनी साधकां!८॥
ईस सेरुओ सार, मांचे रो मंडाणा है। भारी भरखम भार, साल सहेला साधकां !!
साधक-शतक
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