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सगलो म्हारे पल्लै' र, चोखी लागे जकी चीज आपरी ।
शुरुआद समेटतां समेटतां बां सां भाई बन्धुवा स्यूं एक बार खमत - खामणा । hi वास्ते इं पोथी मैं करडो काठो, कहण-सुणण, लिखण बांचण मैं आसी । सवा हाथ रो काल जो कर' र बै सन्त महातमा इं ने विनोद, मन री टीस या हितकारी सीख मान' र खमसी । इं आस मै
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'श्रमण सागर' २०४४ दीवाली रायपुर, मध्य प्रदेश
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