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________________ प्रस्तुति एक विशाल साम्राज्य है मन का। योग का प्रसिद्ध सूक्त है-यत्र पवनस्तत्र मनः, जहां पवन है वहां मन है। मन शब्द से हर कोई परिचित है। चित्त को बहुत कम लोग जानते हैं। आगम साहित्य में चित्त की चर्चा है । पातंजल योगदर्शन में चित्त का उल्लेख है। अधिकांश दर्शनों में चित्त और मन की भेदरेखा स्पष्ट नहीं है । फ्रायड ने मन को ही मानकर मनोविज्ञान को आगे बढ़ाया। कार्ल गुस्ताव यूंग ने मन से अधिक महत्त्व चित्त (साइक) को दिया। क्षेत्र दर्शन का हो, अध्यात्म का हो या मनोविज्ञान का। चित्त और मन के अन्तर को समझना अति आवश्यक है। चित्त हमारी चेतना है। मन अचेतन है । चित्त ज्ञाता है। मन उसका एक यन्त्र है, उपकरण है। हम सन् १९७६ का चातुर्मास लुधियाना में बिता रहे थे। प्रेक्षाध्यान का शिविर । चित्त और मन के अन्तर की चर्चा । सी०एम०सी० हॉस्पिटल के फिजियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डा. मुखर्जी ने पूछा-चित्त और मन में क्या अन्तर है ? उन्हें बताया गया—चित्त हमारे अस्तित्व का एक अंग है मोर मन हमारी प्रवृत्ति का एक तन्त्र है। इस स्पष्ट भेद-रेखा को प्राप्त कर वे भाव-विभोर हो उठे। उन्होंने कहा-यह प्रश्न मैंने युनिवर्सिटी के प्रोफेसरों और मेडिकल साइंस के अध्येताओं से अनेक बार पूछा पर इसका उचित समाधान नहीं मिला । अब मैं समाहित हो चुका हूं। इस विषय का एक नोट बनाकर अपने प्रोफेसर के पास भेजूंगा। यह उलझन अनेक क्षेत्रों और अनेक लोगों की है। प्रेक्षाध्यान शिविरों में समय-समय पर इस उलझन को सुलझाने का सूत्र खोजा गया। अनेक पुस्तकों में यह विकीर्ण था। समणी स्थितप्रज्ञा ने उसे संकलित किया और एक नई पुस्तक सामने आ गई। बीस-पच्चीस शिविर और लगभग बीस पुस्तकों में विकीर्ण विषय को संकलित करने में सघन अध्यवसाय, श्रम और निष्ठा की अपेक्षा होती है । इसके बिना कार्य संभव नहीं बनता। समणी स्थितप्रज्ञा में ये सब बातें हैं और इनका प्रयोग इसमें किया है । मुनि दुलहराजजी प्रारंभ से ही साहित्य सम्पादन के कार्य में लगे हुए हैं। वे इस कार्य में दक्ष हैं। प्रस्तुत पुस्तक के सम्पादन में मुनि धनंजयकुमार ने निष्ठापूर्ण श्रम किया है। ____ आचार्यश्री तुलसी ने प्रेक्षाध्यान एवं जीवन विज्ञान के प्रति अपनी जो तन्मयता प्रकट की है, जिस प्रकार जन-जन को उसकी ओर मोड़ने का प्रयत्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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