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चित्त और मन
करना, निर्धारण और निश्चय करना। चरित्र का निर्माण करना बुद्धि का काम नहीं है। मस्तिष्क में अनेक केन्द्र हैं। बुद्धि का केन्द्र भिन्न है और चरित्र निर्माण का केन्द्र भिन्न है। मस्तिष्क-विद्या के आधार पर मस्तिष्क के केन्द्रों का निर्धारण भी कर लिया गया है कि कौन-सा केन्द्र किसके लिए उत्तरदायी है। कौन से रसायनों के द्वारा कैसे विद्युत्-संवेग पैदा होते हैं, संवेदना पैदा होती है। किस रसायन के द्वारा उनका नियंत्रण होता है और किस केन्द्र से कौन-सी प्रवृत्ति होती है-यह सारा ज्ञान कर लिया गया है। चरित्र और बुद्धि के केन्द्र
___ व्यक्ति के चरित्र का केन्द्र है-हाइपोथेलेमस। यह ब्रेन का एक हिस्सा है। रीजनिंग माइंड बौद्धिक विकास या विवेक के लिए जिम्मेदार
क्षिप्रग्राही, सूक्ष्मग्राही, बहुविधग्राही- ये सारे बौद्धिक विकास के परिचायक हैं। इससे अधिक महत्त्वपूर्ण है चरित्र के विकास की ओर ध्यान देना। चरित्र-विकास के कुछ पहल हैं। नैतिकता का विकास, व्यवहार-शुद्धि का विकास और अनुशासन का विकास-ये सारे चरित्र-विकास के तत्व हैं। चाहे सुपर लरनिंग की बात हो या जीवन-विज्ञान की बात हो, केवल सैद्धांतिक पक्ष से काम नहीं चलता, प्रयोगात्मक पक्ष आवश्यक होता है ।
___ मस्तिष्क के मूल स्रोतों को प्रशिक्षित करना प्रयोगात्मक पक्ष है। जो निष्क्रिय हैं उन्हें सक्रिय करना, जो सुप्त पड़े हैं उन्हें जागृत करना-यह प्रयोग से संबंधित है। मस्तिष्क प्रशिक्षण के प्रयोग
प्रयोग की पहली बात है-तनाव से मुक्ति। व्यक्ति में ग्रहणशीलता तब बढ़ेगी जब वह तनावमुक्त होगा । तनाव चाहे शारीरिक हो, मानसिक या भावनात्मक हो, तनाव के रहते क्षमता नहीं बढ़ सकती । कायोत्सर्ग से तनाव विजित हो जाता है। शरीर में कहीं तनाव नहीं रहता। मस्तिष्क तनाव रहित होता है तब ग्रहण की क्षमता बढ़ जाती है।
दूसरा प्रयोग है—लयबद्ध श्वास । योग में प्राणायाम का बहुत महत्त्व रहा है। धर्म का यह अनिवार्य अंग है। प्राणायाम मस्तिष्कीय विकास के लिए अनिवार्य प्रक्रिया है । इससे मस्तिष्क के सुप्त और निष्क्रिय केन्द्र जागृत और सक्रिय होते हैं।
लयबद्ध श्वास से मस्तिष्क की सुप्त शक्तियां जागती हैं। सारा तंत्र उससे प्रभावित होता है। लयबद्ध चलना, बोलना, श्वास लेना-ये शक्तिजागरण के प्रेरक तत्त्व हैं । जीवन विज्ञान की प्रणाली में इनको बहुत महत्त्व
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