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चित्त और मन
जाता है । ओटोनोमिक नाड़ीतंत्र के दो भाग हैं—पेरासिम्पथेटिक और सिम्पेथेटिक । पेरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम शारीरिक क्रियाओं को उत्तेजित करता है । अनुलोम-विलोम श्वास पद्धति के द्वारा इनमें संतुलन स्थापित किया जा सकता है ।
भावनाओं का उद्गम स्थल लिम्बिक तंत्र का एक भाग हाइपोथेलेमस है। सूक्ष्म शरीर से भाव के प्रकंपन स्थूल शरीर में मस्तिष्क में आते हैं और वे हाइपोथेलेमस में प्रकट होते हैं। फिर मन के साथ जुड़कर मनोभाव बनते हैं। उनके आधार पर हमारा व्यवहार संचालित होता है । लयबद्ध दीर्घश्वास के द्वारा लिम्बिक तन्त्र पर नियंत्रण किया जा सकता है ।
परिवर्तन चक्र
श्वास और मस्तिष्क के चक्रों का जैविक घड़ी के साथ गहरा संबंध है । विलियम फ्लीश के अनुसार पुरुष की शक्ति, सहिष्णुता और साहस का समय चक्र तेईस दिन का होता है । दूसरा मत है कि मनुष्य में बुद्धिमत्ता का समय चक्र तीस दिन का होता है । स्त्रियों में ग्रहणशीलता और अन्तर्दर्शन का समयचक्र अट्ठाईस दिन का होता है। ये समयचक्र प्रत्येक कोशिका में प्राप्त हैं। मनुष्य की सहज प्रवृत्तियां-भूख, नींद, जागरण आदि -आदि समयबोधक जीवन घड़ी के साथ जुड़ी हुई है । प्राणधारा का प्रवाह शरीर के अंगों में सदा एक समान नहीं होता, वह बदलता रहता है । उसका परिवर्तन-चक्रइस प्रकार है
सुबह तीन बजे से पांच बजे तक
सुबह पांच से सात बजे तक
सुबह सात से नौ बजे तक सुबह नौ से ग्यारह बजे तक दोपहर ग्यारह से एक बजे तक दोपहर एक से तीन बजे तक दोपहर तीन से पांच बजे तक सायंकाल पांच से सात बजे तक सायंकाल सात से नौ बजे तक रात्रि में नौ से ग्यारह बजे तक रात्रि में ग्यारह से एक बजे तक रात्रि में एक से तीन बजे तक
फेफड़े
बड़ी आं
पेट
तिल्ली, अग्न्याशय
हृदय
छोटी आंत
उत्सर्जन तंत्र
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गुर्दे
हृदय की झिल्ली श्वसन तंत्र पाचन
मूत्र तंत्र
यकृत्
आधार है मस्तिष्क
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में बौद्धिक विकास पर बहुत बल दिया जा रहा है । विकास चाहे बौद्धिक हो या चारित्रिक, सबका आधार बनता है
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