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मस्तिष्क प्रशिक्षण
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सम्राट अशोक ने कलिंग में लाखों व्यक्तियों की हत्या की थी। उसने बडे युद्ध लड़े। हजारों सैनिक मारे गए। बाद में वह बदल गया और इतना बदला कि अशोक एक अहिंसा का दूत बन गया, शान्ति का संदेश-वाहक बन गया। उसने शान्ति का सन्देश मात्र हिन्दुस्तान में ही नहीं, बाहर भी अनेक देशों में पहुंचाया। यह वही अशोक था, जो एक दिन महान लड़ाकू, योद्धा और नर-संहार करने वाला था और वही अशोक शांतिप्रिय और धर्म का वाहक बन गया । यह कैसे हुआ परिवर्तन ? उस समय उसका नाड़ीतंत्र और ग्रन्थितन्त्र दूसरी ओर काम कर रहा था, हिंसा की ओर उन्मुख था। जब उस पर नियंत्रण हुआ तो आमूलचूल बदल गया, शान्तिप्रिय हो गया, अहिंसा का पुजारी बन गया । विष निष्कासन का साधन : आसन
बदलने के अनेक कारण हैं, हिंसक से अहिंसक होने के अनेक कारण हैं। उन कारणों में योगासन भी एक महत्त्वपूर्ण कारण है। इनके अभ्यास के द्वारा उस तन्त्र को बदला जा सकता है जो हिंसा का तंत्र है । उसमें परिवर्तन किया जा सकता है।
योगासनों का यह कार्य है और इनके द्वारा यह हो सकता है। थाइरायड पर नियंत्रण करना है तो सर्वांगासन का प्रयोग लाभप्रद है। सर्वांगासन के द्वारा इसे संतुलित बनाया जा सकता है।
ये आसन हमारे नाड़ीतन्त्र और गन्थितंत्र को भी संतुलित बनाते हैं ।
एड्रीनल ग्लेण्ड उत्तेजना के लिए काफी काम करती है। उस पर नियंत्रण हो तो काफी संतुलन हो जाता है। शशांकासन एक आसन है। इसका प्रयोग करने से एड्रीनल पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यदि प्रतिदिन इस आसन का प्रयोग किया जाए तो बहुत सारी वृत्तियों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। जितने निषेधात्मक भाव और जितनी मूर्छा की प्रकृतियां हैं, एड्रीनल ग्लेण्ड उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम बनता है। यदि हमारा एड्रीनल ग्लेण्ड पर नियंत्रण होता है तो हिंसात्मक दृष्टियां कम होती हैं, हिंसात्मक उत्तेजनाएं कम हो जाती हैं। मस्तिष्कीय तरंगे : उनके कार्य
आनन्द जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। मैं इस आनन्द की व्याख्या वैज्ञानिक शब्दावली में प्रस्तुत करना चाहता हूं। मेडिकल इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मद्रास ने एक उपकरण का निर्माण किया, जिससे मनुष्य के मस्तिष्क की अल्फा तरंगों को देखा जा सकता है और उन्हें संप्रेषित भी किया जा सकता है । वैज्ञानिकों के अनुसार हमारे मस्तिष्क के विभिन्न प्रकार
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