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अतीन्द्रिय चेतना
३३७ सकता। पूरे शरीर से सुना जा सकता है, चखा जा सकता है, गंध का अनुभव किया जा सकता है। मन की क्षमता
इन्द्रिय चेतना की भांति मानसिक चेतना का भी विकास किया जा सकता है । स्मृति मन का एक कार्य है। उसे विकसित करते-करते पूर्वजन्म की स्मृति (जातिस्मृति) हो जाती है। यह भी अतीन्द्रिय चेतना (एक्स्ट्रा सेंसरी पर-सेप्सर-ई० एस० पी०) नहीं है। दूर-दर्शन, दूर-श्रवण, दूरआस्वादन और दूर-स्पर्शन का विकास भी इन्द्रिय चेतना का ही विकास है। ये सब विशिष्ट क्षमताएं हैं फिर भी इन्हें अतीन्द्रिय चेतना (ई० एस० पी०) नहीं कहा जा सकता। कल्पना और चिन्तन के विकास से भी अनेक अज्ञात रहस्य जान लिये जाते हैं किन्तु वे अतीन्द्रिय चेतना की उपलब्धि नहीं हैं। औत्पत्तिकी बुद्धि के द्वारा अदृष्ट, अश्रुत बातें जान ली जाती हैं पर यह अतीन्द्रिय चेतना नहीं है । पूर्वाभास अतीन्द्रिय ज्ञान है ?
परामनोविज्ञान के अनुसार पूर्वाभास अतीन्द्रिय ज्ञान है पर वास्तव में वह संधिकालीन ज्ञान है। उसे न इन्द्रिय ज्ञान कहा जा सकता है और न अतीन्द्रिय ज्ञान । वह इन्द्रिय और मन से उत्पन्न नहीं है इसलिए उसे इन्द्रियज्ञान नहीं कहा जा सकता। अतीन्द्रिज्ञान की क्षमता उत्पन्न होने पर भविष्य में घटित होने वाली घटना अथवा अतीत-कालीन घटना को प्रत्येक अवधान के साथ जाना जा सकता है किन्तु पूर्वाभास में ऐसा नहीं होता। उसमें भविष्य की घटना का आकस्मिक आभास होता है। अवधान के साथ उसके ज्ञान का निश्चित संबंध नहीं होता इसलिए उसे अतीन्द्रिय ज्ञान भी नहीं कहा जा सकता । वह दिन और रात की संधि की भांति इन्द्रियज्ञान और अतीन्द्रिज्ञान का संधिज्ञान है। चेतना का केन्द्र है पूरा शरीर
__आत्मा समूचे शरीर में विद्यमान है । आत्मा समूचे शरीर के द्वारा पुद्गलों को ग्रहण करती है । भगवती सूत्र में बतलाया गया है—'सव्वेणं सव्वे' -हमारी चेतना के असंख्य प्रदेश हैं। प्रत्येक प्रदेश के द्वारा आत्मा जानती है। किसी एक ही प्रदेश से नहीं जानती। सब प्रदेशों से जानती है। हम यह न माने कि हम आंखों से ही देख सकते हैं, मस्तिष्क से ही सोच सकते हैं। हम समूचे शरीर से देख सकते हैं, सोच सकते हैं। एक्यूपंक्चर के वैज्ञानिक ने हमारे शरीर में सात सौ चैतन्य केन्द्र खोज निकाले हैं। जो केन्द्र मस्तिष्क में
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