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________________ व्यक्तित्व के विविध रूप ८७ करती है। प्राण के द्वारा यह शरीर चल रहा है। यदि प्राण की शक्ति न हो तो यह ढाँचा मात्र रह जाता है, चल नहीं सकता। अनुशासन हमारे जीवन की प्राण-शक्ति है। प्राण है पर अहिंसा का विकास हुए बिना अनुशासन का विकास नहीं हो सकता। जितनी हिंसा, उतनी अनुशासनहीनता। जितनी अहिंसा, उतना अनुशासन । अहिंसा का एक रूप होता है, क्रियात्मक जीवन, प्रतिक्रिया से मुक्ति। पंचतंत्र की एक कहानी है। बंदर और बया थे। बया का घोंसला एक पेड़ पर था और उसी पेड़ पर बंदर बैठा था। वर्षा का मौसम था। तेज वर्षा हो रही थी। बंदर काँप रहा था। बया अपने घोंसले में बैठी थी। गहरी वर्षा होने लगी। बंदर को ठिठुरते देखा तो बया बोली, 'अरे बंदर! तुम तो आदमी जैसे हो। तुम्हारे हाथ हैं, पैर हैं। तुम सब कुछ कर सकते हो। एक घर क्यों नहीं बना लेते?' इतना सुनते ही बंदर गुस्से से भर गया। वह झपटा और बया के घोंसले को तोड़कर नीचे गिराते हुए बोला, 'असमर्थों गृहारम्भे, समर्थों गृह-भंजने। अरे! तू उपदेश देती है? कौन है तू उपदेश देनेवाली? मेरे सब कुछ हैं, हाथ हैं, पैर हैं, मैं अपना घर बनाने में तो समर्थ नहीं हूँ, पर दूसरे का घर तोड़ने में समर्थ अवश्य हूँ।' यह एक प्रतिक्रिया का जीवन है। बया ने अच्छी बात कही थी, कोई बुरी बात नहीं कही थी। उसने कोई बुरा शब्द भी नहीं कहा था। पर आदमी (बंदर) का अहं इतना है, वह सोचता है कि मुझे कहने वाला कौन? हर आदमी खुद को सर्वोपरि मान बैठा है। माने या न माने, करे या न करे, पर भीतर में इतना प्रबल अहंकार है कि वह सोचता है, मुझे कहने वाला कौन है? क्या मैं नहीं समझता? क्या मैं नहीं जानता? मैं मूर्ख हूँ? यह ज्यादा समझदार मुझे उपदेश दे रहा है? इतना क्रूर और इतना डरावना यह अहं का नाग, हमारे भीतर बैठा है। वह जहरीला है। जब कभी कोई सामने आता है तो वह डंक मारने को तैयार रहता है। अहंकार हमारे भीतर है, तब अहिंसा का विकास कैसे होगा? प्रतिक्रिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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