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________________ समता की दृष्टि रहस्य है। जब तक हम दो जातियों के बीच में रहेंगे, तब तक सच्चाई को नहीं पकड़ सकेंगे और सत्य तथा मिथ्या का संघर्ष बराबर बना रहेगा। तीसरी आँख के खुल जाने पर तीसरी जाति का निर्माण करना होता है। यह जो निर्मित है, उसका दर्शन शुरू हो जाता है। अनेकांत के आचार्य ने कहा है 'स्यान्नाशि नित्यं सदृशं विरूपं, वाच्यं न वाच्यं सदसत्तदेव।' तीसरी जाति तीसरी आँख खुल जाने पर अस्तित्व सच्चाई नहीं होती, नास्तित्व सच्चाई नहीं होती, किन्तु अस्तित्व और नास्तित्व का योग, यह तीसरी जाति सच्चाई होती है। पदार्थ को कोई वाच्य कहता है और कोई अवाच्य। कोई कहता है कि यह कहा जा सकता है और कोई कहता है कि यह नहीं कहा जा सकता। एक दार्शनिक परम्परा वाच्य को लिए बैठी है और दूसरी अवाच्य को। सत्य वाच्य होना चाहिए। एक आँख वाच्य को देखती है, दूसरी अवाच्य को देखती है। तीसरी आँख जब खुलती है, तब न कोई वाच्य होता है और न अवाच्य, किन्तु वाच्यावाच्य होता है। यही सच्चाई है। अनेकांत की तीसरी आँख खुले बिना हम दार्शनिक और व्यावहारिक समस्याओं को नहीं सुलझा सकते। आज के विज्ञान ने अनेक प्रवृत्तियाँ चला रखी हैं। मनुष्य उनमें उलझा हुआ है। अनेकांत के बिना हम उनका समाधान भी नहीं खोज सकते। क्रोध : कारण और निवारण एक भाई ने पूछा, 'क्या क्रोध की आदत बंदली जा सकती है?' मैंने कहा, 'संभव है।' उसने पूछा, 'यह कैसे संभव हो सकता है? जो आदत बन गई, वह कैसे बदली जा सकती है?' यदि दृष्टिकोण शाश्वत का है तो आदमी सोचता है कि आत्मा का कुछ भी नहीं बदलता। यदि अशाश्वत का दृष्टिकोण है तो वह सोचता है कि सब कुछ बदल जाता है, शेष कुछ भी नहीं बचता। यदि तीसरी आँख खुल जाए, तो क्रोध की आदत बदल सकती है। तीसरी आँख न खुले, तो क्रोध की आदत कभी नहीं बदल सकती। क्रोध क्यों आता है? यह एक प्रश्न है। परिस्थितिवादी कहेगा कि क्रोध परिस्थितियों से उत्पन्न होता है। समाज में ऐसे कई कारण हैं, ऐसी अनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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