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________________ जीवन में परिवर्तन ३३ के आधार पर चलता है, भेद के आधार पर चलता है । इस भेदानुभूति के क्षेत्र में हम कैसे सोचें ? यह बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न है । चिंतन के दो पहलू होते हैं- विधेयात्मक और निषेधात्मक । हमारा एक दृष्टिकोण, एक चिंतन विधायक होता है और दूसरा निषेधात्मक । अपने और दूसरों के बारे में भी हमारे दोनों ही प्रकार के चिंतन होते हैं । किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि दूसरे के बारे में विधेयात्मक चिंतन कम व निषेधात्मक चिंतन ज्यादा होता है। आदमी की आँख में पता नहीं क्या है, वह अपनी विशेषता ज्यादा देखेगी और दूसरे में कमी ही कमी देखेगी। किसी भी आदमी से पूछ लो, समझदार से समझदार आदमी से पूछ लो, दूसरे में कमी का ही उल्लेख करेगा। शायद ही कोई आदमी दूसरे के लिए यह कहे कि नहीं, वह तो सर्वगुणों से सम्पन्न है । सौभाग्य से ही यह शब्द निकलेगा । संभवतः नहीं निकलेगा और जो कम समझदार होता है, वह दूसरों को समझदार मानता ही नहीं। वह तो सबसे ज्यादा खुद को ही समझदार मानता है और अपनी ही विशेषताओं को देखता है। दूसरे के बारे में उसकी धारणाएँ बहुत अजीब होती हैं। आज जो सत्ता पर बैठा है, वह सारी जनता में कमियाँ देखेगा | उसकी आलोचना करेगा और जब अपना प्रश्न आएगा तो मौन हो जाएगा। यह तो नहीं कहेगा कि मुझ में सारी विशेषताएँ है, पर उसे अपनी कमी का अनुभव भी नहीं होगा । दूसरे की कमी और खामी का दर्शन करना निषेधात्मक दृष्टिकोण है। सामाजिक जीवन में बड़ा प्रश्न है मूल्यों का। समाज मूल्यों के आधार पर चलता है, किन्तु मूल्यांकन करना एक बहुत बड़ी समस्या है। हम सही मूल्यांकन नहीं कर पाते, क्योंकि हमारा दृष्टिकोण विधायक नहीं होता । जिस समाज में अहिंसा प्रतिष्ठित नहीं होती, वहाँ सही मूल्यांकन नहीं हो सकता । मूल्यांकन की पहली शर्त है - अहिंसा । अहिंसा को बहुत सूक्ष्म दृष्टि से समझने की जरूरत है । केवल मारने की बात ही हिंसा नहीं है, यह तो बहुत स्थूल बात होती है। हिंसा की बात हमारी चेतना की समग्र शुद्धता की स्वीकृति से संबंधित है | चेतना में जितना राग और द्वेष अधिक होता है, उतना ही हमारा मूल्यांकन गलन होता है। ये दोनों आपस में इस तरह से जुड़े हुए हैं कि मनुष्य के सामने राग और द्वेष के अलावा तीसरा आयाम उद्घाटित ही नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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