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________________ जो सहता है, वही रहता है मनुजी ने एक बहुत अच्छी बात कही है- 'सर्व आत्मवशं सुखं, सर्व परवशं दुखम् ।' २६ उनके सामने प्रश्न था कि सुख और दुःख को कैसे परिभाषित किया जाए ? सुख क्या ? दुःख क्या ? सुख की क्या परिभाषा हो सकती है ? किसी कवि ने कह दिया सुख-दुःख क्या हैं? मनोभावना, जिसने जैसा कर माना । मधुकर ने तो अपने मरने को सुखमय जाना । यह तो एक साहित्यिक परिभाषा है । साहित्यिक मूल्य की परिभाषा साहित्यिक होती है, किन्तु मनुजी ने सुख की बहुत मार्मिक एवं सुंदर परिभाषा दी है - 'सर्व आत्मवशं सुखं,' अपनी स्वाधीनता ही सुख है । 'सर्व परवशं दुःखम्,' परवश होने का नाम ही दुःख है । आदमी परवश हो गया, इसका मतलब है कि उसने दुःख मोल ले लिया । परवश होना और दुःखी होना अलग बात नहीं है । स्ववश होना और सुखी होना, इसमें कोई भेद नहीं है । परिस्थितिवाद से मुक्ति मनुष्य का स्वभाव है कि वह दूसरों के बारे में बहुत जानना चाहता है । वह दूसरों को इतना जानने लगा है कि खुद को ही भूल गया है। प्रत्येक घटना और परिस्थिति में हमारा ध्यान अपनी ओर नहीं, बल्कि दूसरों की ओर जाता है । इस एकांगी दृष्टिकोण व चिंतन को बदलने के लिए मैं ध्यान को बहुत महत्त्व देता हूँ। ध्यान करने वाला व्यक्ति अपने प्रति बहुत जाग जाता है । अपने प्रति बहुत जागना खतरनाक नहीं है। दूसरे के प्रति बहुत जागना खतरनाक है। खुद को जानने में कोई खतरा नहीं है, लेकिन दूसरे को ज्यादा जानना खतरे से खाली नहीं है । स्वयं को जानने वालों ने आज तक कोई खतरा पैदा नहीं किया, किन्तु दूसरों को जानने वालों ने सारे खतरे पैदा किए हैं। आज दुनिया में जितने बड़े खतरे हैं, उनको उन्हीं लोगों ने पैदा किया है, जो खुद को नहीं जानते, केवल दूसरों को जानने में ही लगे रहते हैं । शस्त्र और परिस्थिति शस्त्रों का निर्माण क्यों हुआ ? दूसरों को जानने के कारण ही उनका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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