________________
समाज में हरामजादा कोई भी नहीं होता, किन्तु जब समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग
अमीरजादा, शाहजादा और नवाबजादा बनकर । बैठ जाता है, तब हरामजादों को जन्म लेना ही पड़ता है। इसके अलावा और कोई उपाय शेष
नहीं रह जाता है। यह समाज की प्रकृति का । विकत स्वरूप है।
क्ति अकेला होता, यदि उपयोगिता नहीं होती। उपयोगिता ने व्यक्ति को बाँधा और समाज बन गया। व्यक्ति अकेला
होता, यदि योग नहीं होता। व्यक्ति जुड़ता है। उसमें योग की क्षमता है, जुड़ने की क्षमता है, संबंध की क्षमता है। इस संबंध की क्षमता से व्यक्ति ने समाज का निर्माण किया। योग और उपयोगिता, ये दोनों परस्परावलंबन के आधार बन गए। तीसरा आधार बना प्रभाव। यदि किसी का किसी पर भी प्रभाव नहीं होता, तो समाज नहीं बनता। उपयोगिता, प्रभाव और योग, ये तीन आधार हैं। समाज की रचना से व्यक्ति अकेला नहीं रहा। उपयोगिता बहुत है, क्योंकि अपेक्षाएँ बहुत हैं। खाने को चाहिए, पीने को चाहिए, रहने को मकान चाहिए, कपड़ा चाहिए और भी न जाने क्या-क्या चाहिए । बहुत सारी अपेक्षाएँ हैं। अकेला व्यक्ति कभी इन सारी अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org