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________________ अपना आलंबन स्वयं बनें १२५ बिछा रखा है। इन सब जालों को तोड़े बिना यदि कोई सीधा राजधानी पर आक्रमण करेगा, तो क्या वहाँ पहुँच पाएगा? अगर समझ होती चाणक्य यात्रा करते-करते एक गाँव में पहुँचा। एक बुढ़िया ढाबा चला रही थी। चाणक्य को भूख लगी। वह भोजन के लिए ढाबे पर आया। बुढ़िया ने खिचड़ी परोसी। चाणक्य ने खिचड़ी के बीच सीधा हाथ डाल दिया। हाथ जल गया। बुढ़िया बोली, 'भाई! तू भी चाणक्य जैसा मूर्ख लगता है।' चाणक्य चकित हो गया। वह बोला, 'माँ! चाणक्य मूर्ख कैसे है ? बुढ़िया बोली, 'मूर्ख तो है ही। सीधा राजधानी पर आक्रमण करता है, लेकिन आस-पास के जनपदों को जीतता नहीं है। राजधानी में अपार शक्ति और सेना है। वह उसे पछाड़ देती है। अगर उसमें समझ होती तो पहले छोटे जनपदों को जीतता, फिर शक्तिशाली बनकर राजधानी पर आक्रमण करता।' चाणक्य ने दोनों कान पकड़ लिए। बुढ़िया ने बहुत अच्छी बात बताई। कभी-कभी हम भी ऐसी ही भूल कर जाते हैं। सीधे आत्मा को पकड़ने की बात करते हैं। राजधानी पर विजय पा लेना बहुत अच्छी बात है, गलत नहीं है। हमारा ध्येय खराब नहीं है, लेकिन जो कठिनाइयाँ हैं, उन पर हम विचार करें। राग और द्वेष की कठिनाइयाँ, अहंकार और ममकार की कठिनाइयाँ । जब तक इनसे पार न पाएँ, तब तक सीधे आत्मा की बात कैसे करें! एक आध्यात्मिक व्यक्ति का ध्येय होता है आत्मा की उपलब्धि, आत्मा का स्वास्थ्य । जैसे चिकित्सा का ध्येय है स्वास्थ्य, वैसे ही ध्याता का ध्येय होना चाहिए आत्मिक स्वास्थ्य, आत्मा की अनुभूति या आत्मा का साक्षात्कार । ध्येय और ध्याता आचार्य रामसेन ने लिखा सति हि ज्ञातरि ज्ञेयं, ध्येयतां प्रतिपद्यते । ततोज्ञानस्वरूपोऽयं, आत्मा ध्येयतमः स्मृतः।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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