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अपना आलंबन स्वयं बनें समाज में श्रम का विभाजन होता है। उस विभाजन के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपना-अपना काम करे, कोई निकम्मा न रहे तो श्रम का मूल्यांकन संभव बन सकता है। प्रगति का पथ
श्रम की प्रतिष्ठा का यह सूत्र जीवनशैली का अनिवार्य अंग होना चाहिए। जितने भी पुरुषार्थवादी हुए हैं, उनमें प्रथम पंक्ति में गिने जाते हैं भगवान महावीर । बहुत लोग नियतिवादी हैं। पुरुषार्थवादी ईश्वरवादी नहीं हो सकते। ईश्वरवाद नियतिवाद है। जो होगा, वह ईश्वर के द्वारा ही होगा। उसकी इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। यह है ईश्वरीय नियतिवाद । भगवान महावीर ने नियतिवाद का खंडन कर पुरुषार्थवाद का प्रतिपादन किया। जहाँ आत्मकर्तृत्ववाद मान्य है, वहाँ कोई भी व्यक्ति श्रम किए बिना नहीं रह सकता। जिसमें श्रम की निष्ठा नहीं होती, जो श्रम नहीं करता, वह सचमुच पिछड़ जाता है। श्रमनिष्ठा प्रगति और विकास का रहस्य सूत्र है। चारी-संजीवनी न्याय
आचार्य हेमचंद्र जा रहे थे, साथ में राजा सिद्धराज भी चल रहे थे। राजा सिद्धराज ने पूछा, 'कौन-सा धर्म अच्छा
'राजन्! बहुत सारे धर्म हैं और अच्छे भी हैं, पर धीरेधीरे समझ में आ जाएगा।'
'महाराज! कैसे समझ में आएगा?' 'श्रम करोगे तो समझ में आ जाएगा।' 'महाराज! यह कैसे होगा?' 'राजन्! चारी-संजीवनी न्याय से पकड़ में आएगा।' 'महाराज! यह चारी-संजीवनी न्याय क्या है?'
'राजन्! एक महिला को ऐसी औषधि मिली, जिसे किसी मनुष्य को खिला दे तो वह पशु बन जाए। एक दूसरी औषधि भी मिली, जिसे खिलाने पर पशु पुनः मनुष्य बन
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