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________________ दीर्घश्वास प्रेक्षा आजकल वोकल साइंस में दो शब्द बहुत प्रचलित हैं - बीइंग और डूइंग - होना और करना । अध्यात्म के क्षेत्र से जुड़े हुए पश्चिमी लोग कहते हैं - हमें करने से होने में आना है, अपने अस्तित्व में आना है। उस स्थिति में पहुंचना है जहां करना न रहे, केवल होना रहे । करना और होना --इन दो शब्दों के बीच में बहुत कुछ बातें चलती हैं । वस्तुतः यह बात नई नहीं है, बहुत पुरानी है । हम शब्दों से परिचित कम रहते हैं । शब्दों से परिचित रहना भी बहुत जरूरी है । अन्यथा स्थिति यह बनती है - जो शब्द कहना चाहते नहीं, उसे हम जबर्दस्ती सुनना चाहते हैं । आज ऐसा ही कुछ हो रहा है । क्रिया : दो प्रकार जैन आगम में दो बहु प्रचलित शब्द हैं- प्रायोगिकी क्रिया और वैनसिकी क्रिया । शरीरशास्त्र के अनुसार हमारी क्रियाएं दो प्रकार की होती हैं - स्वतःचालित और इच्छाचालित । सूत्रकृतांग की वृत्ति में दो प्रकार की क्रियाओं का उल्लेख है - अनुपयोगपूर्विका क्रिया और उपयोगपूर्विका क्रिया । जिस क्रिया में हमारा उपयोग नहीं है, वह अनुपयोगपूर्विका क्रिया है, जैसे- हृदय का धड़कना, पाचन होना, आंख का झपकना आदि । जिस क्रिया का कोई कर्त्ता नहीं, जिस क्रिया पर चेतनात्मक नियंत्रण नहीं है, जो अपने आप होने वाली क्रिया है, वह अनुपयोगपूर्विका क्रिया है, वैनसिकी क्रिया है। जिस क्रिया पर हमारा चेतनात्मक नियंत्रण है, जिसे हम अपनी इच्छा से करते हैं, वह उपयोगपूर्विका क्रिया है, प्रायोगिकी क्रिया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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