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________________ ७६ अपना दर्पणः अपना बिम्ब बहुत नीचे पहुंच गया है । समाज का युवा वर्ग नाइट क्लबों में जाने लगा है। शराब का प्रचलन बहुत बढ़ गया है । खान-पान की विशुद्धता कम हुई है । चरित्र का भी हनन हुआ है। जिस समाज में कठोर जीवन जीने की आदत नहीं होती वह कभी चरित्रवान् नहीं बन सकता । सुविधावादी मानसिकता से व्यक्ति तनावग्रस्त बना है। वह शराब आदि मादक पदार्थों का आदी बन रहा है। जिस समाज या व्यक्ति के लिए शराब का दरवाजा खुल जाता है, उसके लिए सब बुराइयों के दरवाजे खुल जाते हैं । सुविधा सुख-लिप्सा को बढ़ाती है और सुख को सहन करना मुश्किल है। सुख को वही सहन कर सकता है, जो या तो पहुंचा हुआ संत है या कोई बहुत समझदार व्यक्ति है। सुख प्रमाद बढाने का एक अवसर है । दुःख को सहन करने की बात समझ में आती है पर सुख को सहन करने की बात कभी समझ में नहीं आती। सुख को सहन करने की बात सुनना भी व्यक्ति पसंद नहीं करता । प्रमाद न बढ़े, इसके लिए सुख को सहन करना आवश्यक है। साधु हो या गृहस्थ, उसे कठोर जीवन जीने का प्रयत्न करना चाहिए। कायोत्सर्ग से ऐसी चैतसिक स्थिति का निर्माण होता है, जिससे सुख-दुःख को सहने की क्षमता विकसित होती है । सुख-दुःख को समभाव से सहने का एक प्रयोग है कायोत्सर्ग । जो व्यक्ति कायोत्सर्ग को साथ लेता है, वह सुख-दुःख और सुविधावाद से परे की स्थिति में चला जाता है। ऐसा व्यक्ति ही चारित्रिक; नैतिक और सामाजिक मूल्यों को बनाए रख सकता है। अनुप्रेक्षा और ध्यान की आधारभूमि परिवर्तन के दो महत्त्वपूर्ण सूत्र हैं-अनुप्रेक्षा और ध्यान । कायोत्सर्ग की स्थिति में ही उनकी साधना संभव बन सकती है । जब तक कायोत्सर्ग का अच्छा अभ्यास नहीं होगा तब तक ध्यान और अनुप्रेक्षा के प्रयोग सफल नहीं होंगे । कायोत्सर्ग की साधना ध्यान और अनुप्रेक्षा की पृष्ठभूमि का निर्माण करती है । उसके बिना ध्यान और अनुप्रेक्षा का जो परिणाम आना चाहिए, वह नहीं आ पाता । इसीलिए ध्यान और अनुप्रेक्षा करने वाले व्यक्ति के लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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