SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ अपना दर्पणः अपना बिम्ब होगा । यह परंपरा आदिकाल में नहीं थी किन्तु मध्यकाल में किसी भी ग्रन्थ के प्रारम्भ में मंगलाचरण करने का क्रम शुरू हो गया। आज भी कोई बड़ा कार्य होता है तो वह मंगलाचरण से शुरू होता है। यह एक अच्छी परंपरा है। कुछ व्यक्ति भी ऐसे होते हैं, जो स्वयं मंगल होते हैं । वे जैसा सोचते हैं वैसा हो जाता है । उनका जीवन स्वयं मंगल होता है । वे अमंगल को अपनी भावना से मंगल में बदल देते हैं । ज्योतिषशास्त्र में माना जाता है-सबसे अच्छा समय वह होता है, जिस समय व्यक्ति का मन प्रसन्न होता है । प्रसन्न मनःस्थिति में कार्य प्रारंभ करना सबसे अच्छे मुहूर्त में कार्य प्रारंभ करना है । ____ आचार्य रायचंदजी ने माघ बदी नवमी को आचार्य पद संभाला। आचार्यपदारोहण समारोह मनाया जा रहा था । लोगों ने कहा-महाराज! आज तो नखेद तिथि है । मेवाड़ में निषेध को नखेद कहा जाता है। आचार्य रायचंदजी बोले - बिल्कुल ठीक है । आज न खेद है, इसलिए कोई खेद नहीं होगा । मंगल का प्रयोजन महापुरुष हर निषेधात्मक भाव को विधायक भाव में बदल देते हैं और ठीक वैसा ही हो जाता है, अमंगल मंगल बन जाता है । चैतसिक प्रसन्नता होती है, पवित्र भावना होती है तो सब कुछ ठीक हो जाता है। आचार्य रायचंदजी का जीवन सदा मंगलमय रहा । उनके लिए कहा जा सकता है-वे स्वयं मंगल थे । सब व्यक्तियों के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता । एक साधारण आदमी के लिए यह जरूरी होता है कि वह किसी भी कार्य को प्रारंभ करे तो उससे पूर्व मंगल का विधान करे। प्राचीन ग्रंथों में तीन बार मंगल का प्रयोग मिलता है-आदि मंगल, मध्य मंगल और अन्त्य मंगल । मंगल इसलिए किया जाता है कि शिष्य परंपरा से ग्रंथ चलता रहे, किसी प्रकार का विघ्न न आए। न रचना में विघ्न आए, न पढ़ने वाले में विघ्न आए, न ग्रन्थ की सुरक्षा में बाधा आए । यह है मंगल का प्रयोजन । प्रश्न है - कायोत्सर्ग क्यों करना चाहिए । कायोत्सर्ग के दो बड़े प्रयोजन हैं-मंगल और विशुद्धि । कायोत्सर्गः सदा कार्यः मंगलाय विशुद्धये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy