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अपना दर्पणः अपना बिम्ब बिना पूछे न बोलें, धीरे बालें, विवेक पूर्वक बोलें, भावशुद्धि बनाए रखें-ये चार शर्ते पूरी होती हैं तो मान लेना चाहिए-मितभाषण का अभ्यास सधा है। मौनः अनेक अर्थ
___ मौन के अनेक अर्थ होते हैं । प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में मौन के दो अर्थ हैं-एक मौन है होठ से न बोलना और एक मौन है निर्विकल्प रहना।
अजल्पनं भवेद् मौनं, मौनं स्यादल्पजल्पनम् । अविकल्पनमेवापि मौनमन्तर् उदाहृतम् ।।
होठ से न बोलना मौन है, कम बोलना भी मौन है, निर्विकल्प अवस्था में चले जाना अन्तर्मोन है ।
एक शब्द आता है काष्ठा-मौन । मौन की पराकाष्ठा है-इशारा न करना, हाव-भाव और संकेत भी न करना । वस्तुतः काष्ठामौन का अर्थ इतना ही नहीं है । यह एक स्थूल अर्थ है । प्रेक्षाध्यान की भाषा में अंतर्मोन है-स्वरयंत्र को निष्क्रिय बना देना । न स्मृति, न चिन्तन और न कल्पना । यह अंतर्मोन ही मौन की पराकाष्ठा है।
मौन का यह विश्लेषण एक साधक के लिए ही नहीं,सामान्य आदमी के लिए भी बहुत उपयोगी है । उपसंपदाः जीवन दर्शन ____जीवन की सफलता के लिए जिस जीवन दर्शन की जरूरत है, उसके मूल सूत्र उपसंपदा में उपलब्ध हैं । प्रेक्षाध्यान की साधना में इन सब सूत्रों का अभ्यास अपेक्षित है । प्रेक्षाध्यान को सीखने का अर्थ केवल ध्यान सीखना ही नहीं है किन्तु जीवन की सफलता को सुनिश्चित बनाने वाले मौलिक सूत्रों का प्रयोग करना भी है । मैं मानता हूं-जो व्यक्ति प्रेक्षाध्यान की साधना में आता है, वह जीने का एक नया तरीका सीख लेता है । यदि इन सूत्रों पर ध्यान दें, इनका निरन्तर अभ्यास करें तो एक संस्कार बनेगा, जागरूकता
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