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मैत्री
प्रतिक्रिया-विरति और मैत्री
प्रतिक्रिया-विरति और मैत्री में गहरा संबंध है । प्रतिक्रिया की विरति होगी तो मैत्री भाव बढ़ता चला जाएगा और प्रतिक्रिया की अविरति होगी तो प्रतिक्रिया बढ़ती चली जाएगी, शत्रुता का भाव समाप्त नहीं होगा। जहां प्रतिक्रिया होती है, शत्रुता का भाव होता है, वहां मन में बुरे विचार और बुरे भाव आएंगे। बहुत सारे लोगों के मन में बुरी भावनाएं भरी रहती हैं । वे प्रतिक्रिया की भाषा में ही सोचते हैं । अमुक व्यक्ति ने मेरा यह कर दिया, अमुक व्यक्ति ने मेरा वह कर दिया । न जाने कितने व्यक्तियों से जुड़ी हुई घटनाओं का भार अकेला व्यक्ति अपने सिर ढ़ोता जा रहा है । कुछ ऐसे लोग भी होते हैं, जो कभी भार ढोते ही नहीं हैं। कोई घटना घटती है । व्यक्ति सोचता है-जो हो गया, वह हो गया। उसका भार ढोने का अर्थ क्या है? वह घटना को वहीं समाप्त कर देता है। बंधुता की अनुभूति
बंधुता की अनुभूति प्रतिक्रिया को शत्रुता में परिणत नहीं होने देती। बंधुता का विकास आज की अहम अपेक्षा है। शांत सुधारस भावना में इसी बात को बहुत महत्त्व दिया गया है
सर्वे ते प्रियबांधवा, नहि रिपुरिह कोऽपि । मा कुरु कलिकलुषं मनो, निजसुकृतविलोपि ।।
तुम मित्रता का चिन्तन करो । इस जगत् में सभी प्राणी तुम्हारे प्रिय स्वजन हैं । तुम्हारा कोई शत्रु नहीं है । तुम अपने मन को कलह से कलुषित
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