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________________ १४ अपना दर्पणः अपना बिम्ब भावक्रिया से युक्त हो जाए तो सार्वकालिक ध्यान की साधना संभव बन जाए। वैदिक लोग संध्याकाल में संध्या करते हैं और जैन लोग प्रतिक्रमण करते हैं। एक व्यक्ति प्रतिक्रमण कर रहा है । वह प्रतिक्रमण के पाठ का उच्चारण तो कर रहा है लेकिन उसके अर्थ को नहीं जान रहा है । एक व्यक्ति उच्चारण कर रहा है, अर्थ को भी जान रहा है, किन्तु उसके साथ चेतना जुड़ी हुई नहीं है, उसमें उपयुक्त नहीं है चेतना । क्रिया निष्प्राण हो गई । ऐसा प्रतिक्रमण द्रव्य होता है, भाव नहीं। बहुत बार लोग कहते हैं-नवकार मंत्र की माला जपते-जपते अनेक वर्ष हो गए लेकिन माला में मन नहीं लगता । प्रतिक्रमण करते हैं पर उसमें आनंद नहीं आता । इसका कारण क्या है? उसमें आकर्षण क्यों नहीं पैदा हुआ? इतने वर्षों बाद भी फल पका क्यों नहीं ? फल पकना शुरू नहीं हुआ, उसमें रस नहीं पड़ा, इसका अर्थ है-कहीं न कहीं खराबी अवश्य है। पहली बात यह है-हम शब्दों को ठीक से नहीं जानते या हमारे बोलने का तरीका ठीक नहीं है । दूसरी बात है-हम अर्थ भी नहीं जानते । दोहराते चले जा रहे हैं पर पता नहीं है कि हम क्या दोहरा रहे हैं । तीसरी बात यह है-यंत्रवत् क्रिया चल रही है किन्तु उसके साथ हमारी चेतना या उपयोग का कोई योग नहीं है। अर्थबोध की समस्या पुराने जमाने की बात है । सास ने बहू से कहा-जब बिलौना करो, मक्खन ऊपर आ जाए तब आवाज दे देना । बहू ने बिलौना किया। बिलौना करते-करते मक्खन ऊपर आ गया । समस्या हो गई, सास को कैसे सूचित करे? ससुर का नाम था मक्खनलाल । पुराने जमाने में महिलाएं पति का ही नहीं, ससुर का नाम भी नहीं लेती थीं। आखिर बहू ने सूचना देने का एक तरीका सोचा । उसने कहा-सासूजी! जल्दी आओ, ससुरजी छाछ पर तैर रहे हैं । सास घबड़ाती हुई आई। बहू से पूछा-कहां तैर रहे हैं ससुरजी? बहू ने तैरते हुए मक्खन की ओर इशारा करते हुए कहा-ये रहे ससुरजी । जब हम अर्थबोध नहीं कर पाते हैं तब मक्खन की जगह ससुर सामने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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