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________________ लेश्या : गंध, रस और स्पर्श १७६ भावनाएं हैं, वे बहुत बीमारियां पैदा करती हैं। एक ग्रंथि है पिट्यूटरी | इस ग्रंथि से बारह प्रकार के स्राव होते हैं। ये स्राव हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं। इनमें एक स्राव है 'एस.एच.टी. हार्मोन'। इस स्राव का कार्य है एड्रीनल ग्लेण्ड को उत्तेजित करना। जब यह स्राव एड्रीनल को उत्तेजित करता है तब एड्रीनेलिन का अतिरिक्त स्राव होता है, व्यग्रता, अधीरता, अकुलाहट आदि भावनाएं पैदा होती हैं। इस अवस्था में बीमारियों को निमंत्रण मिलता है, बीमारी की पृष्ठभूमि तैयार हो जाती है । हमारी जो रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति है, जैविक रासायनिक श्रृंखला है, वह गड़बड़ा जाती है। व्यक्ति बीमारियों से घिर जाता है। भावना के स्तर पर बीमार आदमी कहता है--मैंने बड़े-बड़े हास्पिटल में चेक-अप करवा लिया, सभी प्रकार के टेस्ट करा लिए । डाक्टर कहते हैं- तुम्हारे सब कुछ नार्मल है, कोई बीमारी नहीं है किन्तु मैं बहुत बड़ी बीमारी भोग रहा हूं । एक पिता ने अपनी समस्या बताते हुए कहा- मेरा लड़का बहुत दुर्बल है । निरन्तर बीमार रहता है । हमारा घर सम्पन्न है। खाने-पीने की कोई समस्या नहीं है, सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं। अच्छे डाक्टर और श्रेष्ठ दवाइयों से भी वह ठीक नहीं हो पा रहा हैं। उसका शरीर कभी बनता ही नहीं है । प्रश्न है-इन समस्याओं का कारण क्या है? एक डाक्टर इन सबका कारण खोजता है शरीर में । वह देखेगा - कहीं कोई जर्म्स या वायरस तो नहीं है ? आधुनिक यंत्र शारीरिक परिवर्तनों को पकड़ लेते हैं। जब शरीर में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं देता है तब डाक्टर उसका कारण पकड़ नहीं पाता। केवल शरीर की चिकित्सा करने वाला कारण को पकड़ने में सफल नहीं हो सकता। ये सारी बीमारियां उपाधि से उत्पन्न होती हैं । भावना के स्तर पर ही इनका निदान और चिकित्सा की जा सकती है । गंध का प्रभाव लेश्या तंत्र में इन समस्याओं का बहुत सुन्दर समाधान मिलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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