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________________ लेश्या : पौद्गलिक है या चैतसिक १६१ है । यदि वे नहीं मिलते हैं तो मेरी प्रतिष्ठा को धक्का लग जाएगा । चपरासी ने कहा- आप चिन्ता मत कीजिए। मैं आपको अभी पांच हजार रुपए ला देता हूं। मालिक आश्चर्य से भर गया । उसने पूछा- तुम्हारे पास इतने रुपए कहां से आए? मैं तुम्हें वेतन तो बहुत थोड़ा देता हूं । चपरासी बोला- जब आपका सिनेमा चलता है तब मैं गेट के बाहर सिर-दर्द की गोलियां बेचता हूं। जो लोग सिनेमा देखकर बाहर निकलते हैं, वे सिर-दर्द से परेशान होते हैं। जब वे सिर दर्द की गोलियां लेते हैं तो उन्हें राहत मिल जाती है। मेरे पास जो रुपए जमा हुए हैं, वे सिर दर्द की गोलियां बेचकर कमाए हुए हैं। यह लाल रंग और फिल्म में दिखाए जाने वाले उत्तेजक दृश्यों का परिणाम था। ये सारे पुद्गल हैं, जो हमें बहुत प्रभावित करते हैं। चैतसिक लेश्या लेश्या का दूसरा पक्ष है चैतसिक लेश्या । भाव लेश्या चैतसिक लेश्या है। प्राणातिपात, मृषावाद आदि अठारह पाप, पांच आश्रव - ये सब भाव लेश्याएं हैं। इन सबमें रंग हैं। एक व्यक्ति झूठ बोलता है तो वैसा रंग बन जाता है। झूठ बोलने वाला व्यक्ति का आभामण्डल भी धुंधला बन जाता है। हमारा आभामण्डल बहुत स्वच्छ है किन्तु जो आदमी झूठ बोलता है, उसका आभामण्डल भद्दा बन जाता है। हम आचरण की बात छोड़ दें। मन में चोरी की भावना जाग गई, हिंसा की भावना जाग गई तो आभामण्डल मलिन बन जाएगा। झूठ या घृणा का भाव जागा तो आभामण्डल भी वैसा ही बन जाएगा। जैसी भावना जागती है, वैसा आभामण्डल बन जाता है। जैसा आभामण्डल बनता है वैसी ही भावना पैदा हो जाती है। संबंध है दोनों में पौद्गलिक लेश्या (द्रव्य लेश्या) और चैतसिक लेश्या ( भाव लेश्या ) -- इन दोनों में गहरा संबंध है। जितने स्थान द्रव्य लेश्या के हैं उतने ही स्थान भाव लेश्या के हैं। जितने स्थान भाव लेश्या के हैं उतने ही स्थान द्रव्य लेश्या के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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