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________________ जैन साहित्य में अतीन्द्रिय चेतना के स्रोत १२५ मध्यगत अवधिज्ञान औदारिक शरीर के मध्यवर्ती स्पर्धकों की विशुद्धि, सब आत्म-प्रदेशों की विशुद्धि अथवा सब दिशाओं का ज्ञान होने के कारण यह अवधिज्ञान मध्यगत कहलाता है।४ अन्तगत : मध्यगत जब आगे के चक्र या चैतन्य केन्द्र जागृत होते हैं तब पुरतः अन्तगत अवधिज्ञान होता है। उससे अग्रवर्ती ज्ञेय जाना जाता है। जब पीछे के चैतन्य केन्द्र जागृत होते हैं तब पृष्ठतः अन्तगत अवधिज्ञान होता है, उससे पृष्ठवर्ती ज्ञेय जाना जाता है। जब पार्श्व के चैतन्य केन्द्र जागृत होते हैं, तब पार्श्वतः अन्तगत अवधिज्ञान उत्पन्न होता है, उससे पार्श्ववर्ती ज्ञेय जाना जाता है। जब मध्यवर्ती चैतन्य केन्द्र जागृत होते हैं तब मध्यगत अवधिज्ञान उत्पन्न होता है। उससे सर्वतः समन्तात् (चारों ओर से) ज्ञेय जाना जाता है। निष्कर्ष की भाषा इसका निष्कर्ष है कि हमारे समूचे शरीर में चैतन्य केन्द्र अवस्थित हैं । १४. नन्दी चूर्णि, पृ० १६: मझगतं पुण ओरालियसरीरमझे फडगविसुद्धितो वा सव्वातप्पदेसविसुद्धतो वा सव्वदिसोवलंभत्तणतो मज्झगतो ति भण्णति। १५. नंदी, सूत्र १६: अंतगयस्स मज्झगयस्स य को पइविसेसो ? पुरओ अंतगएणं ओहिणाणेणं पुरओ चेव संखेन्जाणि वा असंखेज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ। मग्गओ अंतगएणं ओहिणाणेणं मग्गओ चेव संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ। पासओ अंतगएण ओहिणाणेणं पासओ चेव संखेज्जाणि वा असंखेन्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ। मझगएणं ओहिणाणेणं सवओ समंता संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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