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________________ चैतन्यकेन्द्र प्रेक्षा - (२) ११६ जाती । यह क्रम वर्षों तक चलता रहा । ग्रन्थ पूरा हुआ । संध्या के समय भामती दीपक जलाने आई। मिश्र ने ऊपर की ओर देखा - सामने पत्नी खड़ी है। उन्हें भान हुआ-मैंने पत्नी के साथ न्याय नहीं किया । उसे यह पूछा तक नहीं - तुम कैसी हो ? श्री मिश्र के मन में प्रश्न उभरा - इसका ऋण कैसे चुकाऊँ? उन्होंने अपने ग्रंथ का नाम रख दिया - भामती । यह बात जचने वाली नहीं है किन्तु सच है । जिन व्यक्तियों ने बड़े काम किए हैं, उन्होंने अपनी वासनाओं पर नियंत्रण पाया है। ब्रह्मकेन्द्र : वृषण ग्रंथि ब्रह्म- केन्द्र का संयम और वृषण-ग्रंथि का संयम-दोनों जुड़े हुए हैं। कोई व्यक्ति यह कहे - मेरा वृषणग्रंथि पर संयम है किन्तु ब्रह्म - केन्द्र पर संयम नहीं है तो वह सच नहीं बोल रहा है । यदि व्यक्ति यह कहे मेरा ब्रह्म केन्द्र पर संयम है पर वृषण ग्रंथि का संयम नहीं है तो भी वह सच नहीं बोल रहा है। संयम की साधना के लिए इन दोनों चैतन्य केन्द्रों के रहस्यों को जानना बहुत आवश्यक है । इनके नियमों को जाने बिना हम वृत्तियों का विकास एवं उदात्तीकरण नहीं कर पाएंगे। चेतना के विकास के लिए कुछ संयम करना ही होता है । असंयम का जीवन जीएं और कोई बड़ा काम भी करना चाहें-ये दोनों बातें नहीं हो सकतीं। जिन लोगों ने अपने मस्तिष्क से बड़ा काम लेने का संकल्प किया है, उन्हें नीचे के भाग पर संयम करना होगा । लोक : शरीर जैसे लोक तीन भागों में बंटा हुआ है वैसे ही हमारा शरीर भी तीन भागों में बंटा हुआ है । प्राचीन साहित्य में लोक शब्द शरीर के लिए भी प्रयुक्त हुआ है । आयुर्वेद में भी लोक शब्द शरीर के अर्थ में है । धर्मशास्त्रों में भी लोक शब्द का एक अर्थ मिलता है शरीर । शरीर का लोक भी तीन भागों में बंटा हुआ है । नाभि से ऊपर का भाग है ऊंचा लोक । नाभि का भाग है तिरछा लोक और नाभि से नीचे का भाग है अधोलोक । जो व्यक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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