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________________ चैतन्यकेन्द्र प्रेक्षा (२) समस्या है दोनों ओर आदमी सोचता है और सोचना समस्या है। सोच का जगत् समस्याओं का जगत् है। जहां चिन्तन है वहां समस्याओं का होना अनिवार्य है । शिष्य अपनी चिन्तन की समस्या को लेकर गुरु की सन्निधि में प्रस्तुत हुआ। उसने प्रणतिपूर्वक निवेदन किया-गुरुदेव ! मैंने मनोविज्ञान को पढ़ा । उसमें लिखा है-वृत्तियों का दमन नहीं करना चाहिए। दमन करने से वासनाएं अवचेतन मन में चली जाती हैं। ये दमित वासनाएं आदमी को बहुत सताती हैं। मैंने अध्यात्म शास्त्र को पढ़ा । उसमें लिखा है-भोग करने से शक्तियां क्षीण होती हैं, औजस क्षीण हो जाता है, दुर्बलता आती है इसलिए त्याग करना चाहिए, संयम करना चाहिए। दोनों ओर समस्या है । एक ओर समस्या है अध्यात्म की, दूसरी ओर समस्या है मनोविज्ञान की । इस स्थिति में क्या करना चाहिए? तीसरा मार्ग आचार्य ने कहा - वत्स ! यह बात ठीक है कि दमन करने से वृत्तियां समाप्त नहीं होती । उनका उपशमन होता है । उपशमन कभी न कभी तीव्र उभार लाता है, यह बात सर्वथा गलत नहीं है । साधक उपशम के द्वारा ग्यारहवें गुणस्थान तक पहुंच जाता है किन्तु बाद में जब नीचे आता है तब पता नहीं, कहां तक चला जाता है। यह उपशमन का मार्ग अच्छा भी है और खतरनाक भी है। दूसरी बात है-असंयम करें और उपशमन न करें तो शक्तियां बहुत क्षीण होती हैं, शरीर और मन की शक्तियां चुक जाती हैं। ये दोनों समस्याएं हैं। मैं तुम्हें तीसरा मार्ग बताता हूं और वह है जिव्हा-संयम। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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