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________________ १०८ चरित्र का संबंध है ग्रंथितंत्र से अपना दर्पणः अपना बिम्ब बहुत गहरा है चरित्र का स्रोत । भीतर से फूटने वाला यह स्रोत विचार को सीधा नहीं पकड़ता । शरीरविज्ञान के क्षेत्र में यह माना जाता था - मस्तिष्क ही सब कुछ है । हमारी सारी प्रवृत्तियां मस्तिष्क से होती हैं किन्तु आज यह बात साफ हो गई है - चरित्र का संबंध मस्तिष्क से नहीं, ग्रथितंत्र से है । विचार मस्तिष्क में होता है पर मस्तिष्क उससे प्रभावित नहीं होता । क्रोध और क्षमा, अहंकार और विनम्रता, कपट और ऋजुता, लोभ और संतोष - इन सबका संबंध मस्तिष्क से नहीं है। चारित्रिक क्षुद्रता और चारित्रिक उदात्तता - दोनों का संबंध ग्रंथितंत्र के साथ है, मस्तिष्क के साथ नहीं है । एक व्यक्ति का मस्तिष्क बहुत जागृत है, वह समझदार है, सब कुछ है पर चरित्रवान् नहीं है । इसका कारण है - चरित्र का मार्ग ही अलग है । वह ग्रंथितंत्र से जुड़ा हुआ है और उसका विचार से कोई संबंध नहीं है । दो महत्त्वपूर्ण तंत्र हमारे सारे भाव चरित्र के साथ जुड़े हुए हैं । कर्म शरीर के स्पंदन तैजस शरीर में आते हैं । तैजस शरीर के स्पंदन स्थूल शरीर में आते हैं और वे ग्रंथितंत्र को प्रभावित करते हैं । नाड़ीतंत्र और ग्रथितंत्र - ये शरीर के दो महत्त्वपूर्ण तंत्र हैं । नाड़ीतंत्र और ग्रंथितंत्र - दोनों जुड़े हुए हैं किन्तु भावों का जो संबंध है, वह ग्रथितंत्र के साथ अधिक है । जिस व्यक्ति को चरित्र का विकास करना है, उसे ग्रंथितंत्र पर, चैतन्य केन्द्रों पर ध्यान देना होगा । जैन श्रावक की पहचान हम शराब का उदाहरण लें। आज शराब बहुत प्रिय होती जा रही है। जो जातियां शराब से मुक्त हुई हैं, उनमें जैन धर्म से जुड़ी जातियां मुख्य रही हैं। व्यसन मुक्त जीवन जैन श्रावक की विशिष्ट पहचान रही है । क्षत्रिय आदि जातियों के लोग इसमें सम्मिलित हुए और उनके लिए यह पहचान बनाई गई - जो शराब और मांस का प्रयोग नहीं करेगा, वह जैन होगा । उसके साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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