SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६७ समवृत्ति श्वास प्रेक्षा बायां स्वर अधिक सक्रिय और न दायां स्वर अधिक सक्रिय । दोनों स्वर संतुलित रहें तो जीवन में समता का अवतरण हो सकेगा । दायां स्वर अधिक सक्रिय होगा तो क्रोध ज्यादा आना शुरू हो जाएगा, उत्तेजना एवं आक्रामक वृत्ति बढ़ेगी । बायां स्वर अधिक सक्रिय होगा तो डर, भय और हीन भावना बढ़ेगी । यह एक प्रकार की विषमता की स्थिति है । समता वहां है, जहां न भय है और न उदंडता । कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो बहुत उदंड होते हैं, उनके लिए डर नाम का कोई शब्द नहीं होता । जब तक कोई कुछ न करे, तब तक सब कुछ ठीक है । किसी के कुछ कहते ही व्यक्ति गुस्से में भर जाता है । बहुत बार ऐसी धमकियां भी दे देता है-मैं घर से भाग जाऊंगा, छत से नीचे गिर जाऊंगा आदि-आदि। दूसरों को डराना-धमकाना उसके स्वभाव का एक अंग बन जाता है। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो बहुत दब्बू और डरपोक होते हैं । घर से बाहर जाने में उन्हें डर लगता है । एक युवक ने कहा - 'मेरी बहुत विचित्र स्थिति है । मैं किसी से काम की बात नहीं कर सकता। व्यापार नहीं चला सकता। किसी के सामने आते ही हार्ट धक् धक् करने लग जाता है ।' हमें ऐसे सूत्र को खोजना है, जिससे ये दोनों वृत्तियां न हों, केवल समता की वृत्ति हों। न उदंडता और न भय । अभय हो और उसके साथ हो अहिंसा, मैत्री एवं अनुशासन का योग । साम्यवाद हमारा सारा व्यवहार और आचरण समता से संचालित हो तो उससे बढ़िया कोई प्रणाली नहीं हो सकती । जो लोग कई दशकों से साम्यवाद के विकास में लगे हुए हैं, वे आज कह रहे हैं-साम्यवाद हमारे लिए कोई मॉडल नहीं है। लोकतंत्र और स्वतन्त्रता पर पूंजीवाद का एकाधिकार नहीं है। ये स्वर साम्यवाद से जुड़े लोगों के हैं। इसका अर्थ है-हमारा आचरण समता से अनुस्यूत नहीं रहा और इसीलिए साम्यवाद सफल नहीं हो सका । जहां समता है वहां विषमता पनप नहीं सकती। जहां विषमता है वहां अवश्य ही समता का अभाव है। अध्यात्म के आचार्यों ने लिखा, हमारे आचरण का कोई चरम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy