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दस
बिम्ब का साक्षात्कार वही कर सकता है, जिसका ज्ञान और दर्शन सर्वथा
अनावृत है। बिम्ब है आत्मा। प्रतिबिम्ब है शरीर, वाणी और मन। आत्मा शरीर में है पर वह शरीर नहीं है। शरीर आत्मा की अभिव्यक्ति का स्रोत है पर वह आत्मा नहीं है। सचाई यह हैव्यक्ति शरीर को नहीं, शरीर से प्रतिक्षण विसृष्ट होने वाली शरीराकार प्रतिकृति को देखता है। शब्द को नहीं, शब्द की प्रतिध्वनि को सुनता है। चिन्तन, स्मृति और कल्पना को नहीं, चिन्त्यमान स्थिति में प्रयोग परिणत पुदगल स्कंधों को पकड़ता है। वैज्ञानिक जगत् के अधुनातन आविष्कार इस सचाई को प्रमाणित कर
एक व्यक्ति किसी स्थान पर बैठा। वह उस स्थल को छोड़कर अन्यत्र चला गया। उस विसर्जित स्थान से उसी व्यक्ति का फोटो खींचा जा सकता है। व्यक्ति जो बोलता है, वह आकाशिक रेकार्ड में कैद हो जाता है। सैकड़ों-हजारों वर्ष बाद भी उस शब्द की ध्वनि तरंगों को पकड़ा जा सकता है। व्यक्ति जो चिन्तन करता है, उसका मस्तिष्क में अंकन होता है। एक व्यक्ति मल्टीस्टोरी बिल्डिंग के बारे में सोच रहा था। उसके मस्तिष्क का अत्यन्त संवदेनशील कैमरे से फोटो लिया गया। उसी मल्टीस्टोरी बिल्डिंग का चित्र उतर आया।
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