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दरवाजे अनेक हैं । एक दरवाजा बंद करने से सारे दरवाजे बंद नहीं होते । सबसे बड़ा दरवाजा है शरीर का । इसमें बाहर से बहुत कुछ आ रहा है । हम इसे बंद करें | ताकि इसमें बाहर से ऐसा कुछ न आए, जो हमें दुःख दे, सताए । कायगुप्ति है- कायोत्सर्ग, शरीर को स्थिर बना लेना । शरीर की स्थिरता सधी, काय गुप्ति हो गई। जो व्यक्ति कायोत्सर्ग नहीं करता, काया की गुप्ति नहीं करता और संवर भी चाहता है, उसका संवर कभी सिद्ध नहीं होता । उसका संकल्प मात्र संकल्प ही रह जाता है । संकल्प की परिपक्वता के लिए, संवर की सिद्धि के लिए आंच देनी होगी । वह आंच काय - गुप्ति के द्वारा संभव है ।
वाग्गुप्ति : मौन
सबसे पहली बात है स्थिरता । साधना का प्रथम सूत्र है स्थिरता, चंचलता को कम करना । चंचलता कम होगी तो दरवाजा अपने आप बंद हो जाएगा । हम शरीर की चंचलता को कम करें, वाणी की चंचलता को कम करें। बोलना आवश्यक है । बोले बिना काम नहीं चलता, पर अनावश्यक न बोलें । यदि 1 हम आवश्यकतावश बोलें, तो दूसरों को संताप देने वाली वाणी न बोलें, हिंसा करने वाली वाली न बोलें। यदि ये सारे निरोध होते चले जाएंगे तो वाणी की स्थिरता सधती चली जाएगी, वाक् पर नियंत्रण होता चला जाएगा । वाणी का निरोध होता है तो एक दरवाजा बंद हो जाता है । वाक् निरोध के लिए भी साधना जरूरी है । हम आधा घंटा, एक घंटा काय - स्थिरता की साधना करें तो साथ-साथ वाणी का निरोध भी करें । प्रश्न है- वाणी का निरोध कब करें? कुछ लोग नींद के समय बोलने का त्याग कर लेते हैं । वस्तुतः इससे वाक्गुप्ति की सिद्धि नहीं होती। मौन तब करना चाहिए जब बोलने का समय हो । इस स्थिति में ही मौ: की सार्थकता हो सकती है ।
मनोगुप्ति : मन की सिद्धि
संवर की सिद्धि का एक उपाय है- मनोगुप्ति, मन की सिद्धि | मन न जाने बाहर से कितना कूड़ा-करकट ले आता है । उसके निरोध की तीन
जैन धर्म के साधना - सूत्र
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