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तब ध्यान का अध्याय प्रारंभ होगा, आश्रव का द्वार सिकुड़ जायेगा, बाहर से आना बंद हो जाएगा । इस स्थिति में ही ध्यान सधता है, ज्ञाता को समझने का अवसर मिलता है।
दो अवस्थाएं . समस्या है मूढ अवस्था । जब तक चित्त की मूढ अवस्था रहेगी तब तक समस्या का समाधान नहीं होगा। यह अवस्था बनती है श्वास, योग
और चंचलता के कारण । जितना श्वास, जितना योग, जितनी चंचलता उतनी क्षिप्त अवस्था । इस स्थिति में सत्त्वगुण कमजोर हो जाता है, रजोगुण और तमोगुण प्रबल हो जाता है । दो अवस्थाएं हैं- अज्ञानता की अवस्था और मूढ़ता की अवस्था । व्यक्ति नहीं जानता, यह अज्ञानता है । एक व्यक्ति जानते हुए भी नहीं जानता, यह मूढ़ता है । आश्रव का पहला प्रकार हैमिथ्या दृष्टिकोण । मिथ्या दृष्टिकोण बना और मूढता आ गई । मूढ व्यक्ति जाता है- सुख की दिशा में और प्राप्त करता है- दुःख ।
चंचलता और आश्रव
दुःख का पहला स्रोत है-मिथ्या दृष्टिकोण । दूसरा स्रोत है-अविरति-आकांक्षा । व्यक्ति में इतनी आकांक्षा है कि जिसका कोई अंत नहीं । तीसरा स्रोत है-प्रमाद । व्यक्ति को धन याद रह जाता है, मान और अपमान याद रह जाता है, गाली याद रह जाती है किन्तु मैं चैतन्यमय हूं, आनन्दमय हूं, यह याद नहीं रहता | चौथा स्रोत है-कषाय-क्रोध, मान, माया और लोभ । इन सबको उद्दीप्त करती है-चंचलता । जो व्यक्ति आत्मा से परमात्मा बनना चाहता है, ध्यान करना चाहता है, उसे सबसे पहले ध्यान देना होगा चंचलतः पर | चंचलता मिटेगी, आश्रव का द्वार बंद हो जाएगा, दुःख का स्रोत बन्द हो जाएगा।
यह दुःख कहां से आ रहा है ?
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