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की परिभाषा है-जिसमें भार है, जिसमें द्रव्यमान है, जिसका आयतन है और जो ज्ञेय होता है, वह द्रव्य है । आत्मा इसलिए ज्ञेय नहीं है कि उसमें भार नहीं है और उसका कोई आयतन भी नहीं है।
हम इस पर विमर्श करें । वस्तुतः द्रव्य की भाषा स्थूल पुद्गल के आधार पर ही गढी गई है । आज भारहीन परमाणु भी खोज लिए गए हैं। उनमें भार नहीं हैं फिर भी वे द्रव्य हैं । स्थान को वही रोकता है, जो स्थूल है । सूक्ष्म द्रव्य स्थान को रोकता नहीं है । अनेकांत के अनुसार ज्ञाता भी द्रव्य है और भारमुक्त के भी द्रव्य होने में कोई बाधा नहीं है । भारहीन भी द्रव्य है और भारयुक्त भी द्रव्य है । ज्ञेय तो सब होता ही है । ज्ञाता को ज्ञेय बनने में भी कोई कठिनाई नहीं है और उसके द्रव्य बनने में भी कोई कठिनाई नहीं
सार्थक स्वप्न
___ इस बिन्दु पर आईंस्टीन का यह स्वप्न सार्थक होता है- मैं ज्ञाता को जानना चाहता हूं । यह स्वप्न पूरे अध्यात्म जगत् का स्वप्न रहा है । जिसके मन में ज्ञाता को जानने की अभीप्सा न हो, वह पूर्ण आध्यात्मिक नहीं बन सकता । ध्यान किसलिए है ? यदि ध्यान मात्र मानसिक शान्ति के लिए ही है तो उसका अर्थ बहुत छोटा हो जाएगा । शारीरिक एवं मानसिक बीमारियों की समाप्ति ध्यान का प्रासंगिक परिणाम है । ध्यान का मूल उद्देश्य है-ज्ञाता को जानना । जब तक मन में यह ललक नहीं जागेगी,ध्यान आगे नहीं बढ़ पाएगा । वह मन के स्तर पर ही चलता करेगा । जैसे दुनियावी आदमी मन के खेल खेलता है वैसे ही ध्यान करने वाला भी मन के खेल खेल लेता है | हमें मन से ऊपर उठकर चेतना के स्तर तक जाना है, ज्ञाता का संवेदन या अनुभव करना है।
स्वप्रकाशी है ज्ञाता
ध्यान का मूल उद्देश्य है-ज्ञाता का साक्षात्कार, जानने वाले को जानना । प्रश्न हो सकता है-ज्ञाता स्वयं जानता है, फिर उसे क्यों जाना जाए । वही
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जैन धर्म के साधना-सूत्र
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