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आत्मा की उपासना निर्विघ्न है। आत्मोपासक के सामने यदा-कदा विघ्न आते रहते हैं। प्राकृतिक, भौगोलिक, मानवीय, पाशक्कि, दैविक और वातावरणीय-ये सब अपने-अपने क्रम से चलते हैं। उनका गतिक्रम किसी के लिए सहायक और किसी के लिए बाधक बन जाता है। अध्यात्म के क्षेत्र में यदा-कदा आने वाले विघ्नों और बाधाओं पर विचार किया गया। उनके उपशमन अथवा निवारण का उपाय खोजा गया। उन उपायों का एक महत्त्वपूर्ण अंग है आवश्यक। दिनचर्या का एक ध्रुव योग है आवश्यक । यह अध्यात्म विशुद्धि का प्रयोग, जागरूकता का दिग्सूचक मंत्र, आत्मनिरीक्षण का अध्यादेश और विघ्ननिवारण का महामंत्र है। प्रस्तुत पुस्तक में अवश्य करणीय अनुष्ठान के रूप में आवश्यक पर विचार किया गया है।
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