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सफल जीवन के सूत्र
आचार्य उमास्वाति ने तत्वार्थाधिगम सूत्र लिखा । उसका नाम है मोक्ष शास्त्र | उस ग्रंथ की पृष्ठभूमि में आचार्य उमास्वाति ने कुछ श्लोक लिखे । वे विचार-शुद्धि की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । उसका पहला श्लोक है
सम्यक्दर्शनशुद्धं यो ज्ञानं, विरतिमेव चाप्नोति ।
दुःखनिमित्तमपीदं, तेन सुलब्धं भवति जन्म ।। जो व्यक्ति सम्यक् दर्शन से विशुद्ध ज्ञान प्राप्त करता है और ज्ञान के पश्चात् विरति को प्राप्त करता है, उसका यह जन्म, जो दुःख का निमित्त है, सफल हो जाता है।
सफल जन्म की कसौटी
इस श्लोक का आशय बहुत गंभीर है । जन्म प्रत्येक प्राणी का होता है । यह संसारचक्र है । इसमें रहने वाला कोई भी प्राणी जन्म से विरत नहीं रहता । जन्म और मरण अनवरत चलता है । जन्म होना एक बात है और जन्म सफल होना बिल्कल दूसरी बात है | जन्म नारक का भी होता है. देव का भी होता है, तिर्यंच और मनुष्य का भी होता है । इन चारों गतियों में परिभ्रमण करने वाले प्रत्येक प्राणी का जन्म होता है। किन्तु जन्म का सफल होना बिल्कुल अलग घटना है । सफलता की अपनी-अपनी कसौटियां होती हैं । यदि हम मोक्ष मार्ग या अध्यात्म शास्त्र की दृष्टि से विचार करें तो सफल जन्म उसका होता है, जिसे सम्यग् दर्शन उपलब्ध होता है । जिसका दृष्टिकोण सम्यक् हो गया, उसका जन्म सफल हो गया । वह नहीं होता है तो जन्म सफल नहीं माना जाता है।
सफल जीवन के सूत्र
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