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आशीर्वचन
भगवान महावीर ने धर्म के दो प्रकार बतलाए–अगार धर्म और अनगार धर्म। प्रस्तुत पुस्तक में मुख्यतया अनगार धर्म की चर्चा की गई है। साधु और गृहस्थ का गहरा संबंध है इसलिए स्थानांग सूत्र में गृहस्थ को निश्रास्थान बतलाया गया है।
भंवरा थोड़ा-थोड़ा लेकर अपना काम चलाता है और पुष्प को भी कोई कष्ट नहीं देता। साधु की आहार चर्या भ्रमरवत बतलाई गई है। प्रस्तुत पुस्तक में उस विधि की जानकारी प्राप्त है।
मुनि रजनीश कुमारजी ने साधु-चर्या के विषयों का अध्ययन किया है। प्रस्तुत पुस्तक में उन्होंने साध्वाचार से संबद्ध अनेक विषयों की संयोजना की है। विश्वास है कि इस पुस्तक से पाठक को साधु-चर्या के विषय में अच्छी जानकारी मिलेगी।
आचार्य महाप्रज्ञ
अणुविभा केन्द्र, जयपुर १२ जुलाई २००८
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