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साध्वाचार के सूत्र
प्रश्न ५८. क्या साधु को बहराने के लिए खरीदकर लाई हुई वस्तु, उधार
लाई गई वस्तु, अदला-बदली की हुई वस्तु तथा किसी से छिनी हुई
वस्तु कल्पनीय होती है? उत्तर-नहीं, ये सब अकल्पनीय होती हैं। प्रश्न ५६. साधु पधारने वाले हो, यह सोचकर कि हम भी जल्दी खा लेंगे।
इस निमित्त से खाना जल्दी बनाया जाये तो क्या वह भोजन
कल्पनीय होता है ? उत्तर-नहीं, ऐसा आहार-पानी भी अकल्पनीय होता है, क्योंकि वह साधु और
गृहस्थी दोनों के लिए जल्दी बना है, उसी प्रकार खाना बन रहा हो, उसमें - मुनि के लिए थोड़ा ज्यादा बनाकर रखे तो भी अकल्पनीय होता है। प्रश्न ६०. आलमारी आदि जो स्थाई हो, दीवार के भीतर स्थित हो और न
हिलती हो उसमें यदि सचित्त, अचित्त दोनों तरह की वस्तु रखी हो तो
क्या अचित्त वस्तु बहरा सकते है ? उत्तर-हां, वह सूझती होती है बशर्ते उस खण में कागज, कपड़ा या अन्य कोई
उठाऊ वस्तु बिछी न हो या सचित्त का स्पर्श न हो। प्रश्न ६१. साधु अपने के भोजन की व्यवस्था कैसे करते हैं? उत्तर-वे गोचरी (भिक्षा) द्वारा अपने भोजन की व्यवस्था करते हैं। प्रश्न ६२. साधुओं की भिक्षा विधि क्या है? । उत्तर-साधु दाता का अभिप्राय देख कर शुद्ध-भिक्षा लेते हैं। प्रश्न ६३. शुद्ध-भिक्षा का क्या अर्थ है ? उत्तर-१. जिस घर में मांस मदिरा आदि अभक्ष्य पदार्थों का सेवन न होता हो।
२. भोजन साधु के लिए बना हुआ न हो, गृहस्थ अपने लिए बनाता हो, उसमें से अपना संकोच कर साधु को दे तो साधु उसे ले सकता है। ३. रोटी आदि वस्तु कच्चे पानी, अग्नि, हरियाली, नमक आदि सचित्त वस्तु का स्पर्श न करती हो। ४. बहराने वाला (भिक्षा देने वाला) किसी प्रकार
की हिंसा में रत न हो। प्रश्न ६४. साधु द्वारा पहले दिन जिस घर से भिक्षा प्राप्त की गई हो तो क्या
उसी घर से वहां दूसरे दिन भी भिक्षा प्राप्त की जा सकती हैं। उत्तर-उस स्थान पर नहीं ले सकते सहज स्थान परिवर्तन हो तो ले सकते हैं। प्रश्न ६५. स्थान-परिवर्तन का क्या अर्थ हैं? उत्तर-जिस स्थान पर आज गोचरी की। उसी घर में दूसरे दिन दूसरे स्थान पर
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