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साध्वाचार के सूत्र
- जो अव्रत लगता उससे वह बच जाता है।
२. व्रत संवर से अशुभ कर्मों का नाश होता है तथा अंतराय कर्म का क्षय होता है और आत्मा उज्ज्वल होती है।
३. स्वयं के ऊनोदरी तप होता है। प्रश्न ४८. साधु-साध्वियों को असत्य बोलकर असूझता आहार-पानी देने से
क्या होता है? उत्तर-१. असूझता बहराने से अतिथिविसंभाग व्रत भंग होता है, २. असत्य
बोलने का दोष लगता है। ३. वह साधु के व्रत में दोष लगाता है इसलिए
उसे दोष लगता है। प्रश्न ४६. रायता या सिकंजी, शरबत आदि में कच्चे पानी का बर्फ मिला हो
तो वह सूझता होता है या असूझता? उत्तर-असूझता होता है किन्तु बर्फ के पूर्णतः गलने के करीब १० मिनट बाद
सूझता हो सकता है। प्रश्न ५०. साधु-साध्वियां गोचरी के लिए पधार जाएं उस समय यदि गृहस्थ - सचित्त का स्पर्श कर रहा हों, जैसे धान चुग रहा हो, हाथ में हरियाली
की थैली हो, फ्रिज खोल रहा हो, लाईट-पंखा आदि चालू कर रहा हो
तो वह सूझता हो सकता है? उत्तर-साधु-साध्वी के घर पधारने पर जिस भाई-बहन के वन्दना करने का
पच्चक्खाण होता हैं वे सचित्त छोड़ कर वंदना करने पर सूझते हो सकता
हैं। अन्यथा नहीं होते। प्रश्न ५१. जिस प्रकार सचित्त से स्पृष्ट वन्दना करने पर सूझता हो सकता है
वैसे स्नान करके आया हुआ, हाथ धोया हुआ, वनस्पति काटता हुआ, नमक आदि सचित्त रजों से संयुक्त सचित्त या कच्चा पानी
आदि लगा हो, वह भी सूझता हो सकता है ? उत्तर नहीं होता है, क्योंकि वंदना करने के बाद भी सचित्त का संघट्टा
(स्पर्श) बना रहता है। परन्तु सचित्त का अंश न रहने के बाद वह बहरा
सकता है। प्रश्न ५२. क्या सामायिक में साधु-साध्वी को गोचरी पानी आदि की
भावना भाई जा सकती है तथा बहराया जा सकता है? उत्तर-हां, भावना भाना तथा बहराना-दोनों किया जा सकता है क्योंकि साधु
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