SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाप्रज्ञ-दर्शन CO अनर्थदण्ड विरमण के अन्तर्गत किया है। जिसके चार प्रकार हैं१. अपध्यानाचरित-आर्त, रौद्र ध्यान की वृद्धि करने वाला आचरण । २. प्रमादाचरित-प्रमाद की वृद्धि करने वाला आचरण । ३. हिंस्रप्रदान-हिंसाकारी अस्त्र-शस्त्र देना। ४. पापकर्मोपदेश-हत्या, चोरी, डाका, द्यूत आदि का प्रशिक्षण देना। इन अनर्थदण्ड विरमण व्रत की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित अतिक्रमणों से बचना होता है१. कन्दर्प-कामोद्दीपक क्रियाएं। २. कौतकुच्य–कायिक चपलता। ३. मौखर्य-वाचालता। ४. संयुक्ताधिकरण-अस्त्र-शस्त्रों की सज्जा। ५. उपभोग परिभोगातिरेक-उपभोग-परिभोग की वस्तुओं का आवश्यकता से अधिक संग्रह। व्रतों के अतिचार सत्य, अचौर्य एवं ब्रह्मचर्य के संबंध में तो जैन परम्परा ने कोई विशेषता तो प्रदर्शित नहीं की, किंतु इन व्रतों के अतिचारों का वर्णन करते समय अपनी सूक्ष्म दृष्टि का परिचय दिया और एक गृहस्थ को पूरी तरह से इस तरह बांधा कि वह किसी भी प्रकार का असामाजिक कार्य न कर सके । इन अणुव्रतों का स्वरूप इस प्रकार हैसत्य अणुव्रत मैं स्थूल मृषावाद का प्रत्याख्यान करता हूं। वैवाहिक संबंध, पशु-विक्रय, भूमि विक्रय, धरोहर और साक्षी जैसे व्यवहारों में असत्य न स्वयं बोलूंगा, न दूसरों से बुलवाऊंगा, मन से, वचन से, काया से। मैं इस सत्य की सुरक्षा के लिए किसी पर दोषारोपण, षडयंत्र का आरोप, मर्म का प्रकाशन, गलत पथ-दर्शन और कूटलेख जैसे छलनापूर्ण व्यवहारों से बचता रहूंगा। अचौर्य अणुव्रत • मैं स्थूल अदत्तादान (चोरी) का प्रत्याख्यान करता हूं। मैं आजीवन ताला तोड़ने, जेब कतरने, सेंध मारने, डाका डालने, राहजनी करने और दूसरे के स्वामित्व का अपहरण करने जैसे क्रूर व्यवहार न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy