SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामाजिक-आर्थिक तंत्र के चार मॉडल ७३ प्रहसन बनकर रह गई है। चुनाव में एक उम्मीदवार खड़ा होता है, आपको उसे ही वोट देना है, लेकिन वोट देने का नाटक पूरा खेला जाएगा। राष्ट्र के हित का बहाना बनाकर समाजवादी व्यवस्था में जो निर्णय लिये जाते हैं वे पारदर्शी भी नहीं हैं। स्वतंत्रता का मूल्य चुकाकर समाजवाद से व्यक्ति जो पाना चाहता था वह उसे नहीं मिल पाया और इसलिए वह व्यवस्था भी कारगर सिद्ध नहीं हो सकी। व्यवहार में समाजवादी सिद्धान्त लागू किए जाने पर हमारे सम्मुख यह परिणाम आया कि व्यक्ति की स्वतंत्रता तो समाप्त हो गई, जिसके कारण उसमें असंतोष उत्पन्न हुआ; दूसरी ओर प्रतिस्पर्द्धा का भाव न रहने से उत्पादन भी घटा। तीसरी ओर मधुर और ललित भाव न रहने से जीवन की सरसता सूख गई और इतनी कीमत चुकाने के बाद भी शोषण समाप्त करके मनुष्य को सुखी बना देने का लक्ष्य पूरा होता दिखाई नहीं दिया । वर्णाश्रम व्यवस्था I ऊपर हमने पूंजीवाद और समाजवाद की चर्चा की। ये दोनों व्यवस्थाएं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की हैं। इनके सामानान्तर दो व्यवस्थाएं ऐसी भी हैं - जो भारत तक ही सीमित हैं। इनमें एक व्यवस्था वर्णाश्रम की है, जिसका मूल वैदिक धारा है और दूसरी व्यवस्था चतुर्विध संघ की है, जिसका आधार श्रमण परम्परा है। इनमें से पहले वर्णाश्रम व्यवस्था को लें । इस व्यवस्था का आधार यह है कि मनुष्य के चार घटक हैं - शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा, जिन्हें क्रमशः अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष चाहिए । अर्थ का उत्पादन मूलतः शारीरिक श्रम का फल है। यह श्रमिक वर्ग जो अर्थ का उत्पादन करता है प्राचीन भाषा में शूद्र कहलाया । मन की कामनाओं की पूर्ति के लिए जो वर्ग पदार्थों का वितरण करता है वह वैश्य कहलाया । धर्म की स्थापना करने का कार्य क्षत्रिय का है और मोक्षमार्ग का प्रतिपादन करने वाला ब्राह्मण है। समाज के ये चार विभाजन समाज पुरुष के चार अंगों के समान हैं। पाँव शूद्र है। जिस प्रकार पाँव पर ही सारा शरीर खड़ा होता है, उसी प्रकार श्रमिक पर ही सारा समाज टिका है। यदि श्रमिक श्रम न करे तो न हमारे पैर में न जूता हो, न तन पर कपड़ा और न सिर पर छत । वैश्य उदर के समान है, जो कुछ भी हम पेट में डालते हैं-पेट उसे अपने पास रखता नहीं, सारे शरीर में आवश्यकतानुसार वितरित कर देता है । वैश्य भी समाज के लिए यही कार्य करता है । क्षत्रिय भुजा है। भुजायें शरीर की रक्षा करती हैं, क्षत्रिय भी समाज की रक्षा करता है। ब्राह्मण मुख है। वाणी ही ज्ञान की अभिव्यक्ति का साधन है । ब्राह्मण ज्ञान का प्रसार करता है । वह ज्ञान ही मोक्ष देने वाला बन जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy