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महाप्रज्ञ-दर्शन अध्यात्म का कार्य : शिक्षा
प्रश्न होता है कि क्या एक अध्यात्म पुरुष कोई समाज व्यवस्था दे सकता है। प्रश्न का उत्तर दोनों प्रकार से दिया जा सकता है। समाज व्यवस्था को बनाये रखने के लिए हमारे पास दो साधन हैं-शिक्षा और दंड व्यवस्था। शिक्षा मनुष्य को अपराध से बचाती है, दण्ड व्यवस्था अपराधी को दण्डित करती है। समाज के लिए दोनों आवश्यक है। अध्यात्म पुरुष इन दोनों में से शिक्षा की व्यवस्था दे सकता है। दण्ड व्यवस्था देना उसके क्षेत्र से बाहर की बात है।
___अध्यात्मपुरुष बुराइयों को रोकता है, यह निवृत्ति धर्म का स्वरूप है। किंतु वह उन प्रवृत्तियों का उपदेश नहीं दे पाता जो समाज के लिए आवश्यक है। इस दृष्टि से भी अध्यात्म पुरुष समाज व्यवस्था में सहायक तो होता है, किंतु वह समाजशास्त्री नहीं होता। अध्यात्म के सिद्धान्त शाश्वत हैं-समाज के सिद्धान्त परिवर्तनशील हैं। समाज के सिद्धान्त बदलते हैं और बदलने चाहिए, लेकिन उन पर अध्यात्म का अंकुश रहना चाहिए। अन्यथा वे शाश्वत से हटकर आपाततः लाभकारी होते हुए भी अन्ततोगत्वा आत्मघाती सिद्ध हो सकते हैं | अध्यात्म पुरुष दूरदर्शी होते हैं और अपनी इस दूरदृष्टि के कारण वे समाज को तदर्थवाद (adhocism) से बचाते हैं। समाज व्यवस्था : जैन परम्परा के परिप्रेक्ष्य में
ऊपर हमने चर्चा की कि समाज व्यवस्था समय के साथ बदलती है। भगवान् ऋषभ जैन परम्परा के तो आदि तीर्थंकर हैं ही, वैदिक परम्परा के अवतार पुरुष भी हैं। उन्होंने संन्यास ग्रहण किया किंतु उससे पूर्व वे राजा भी रहे। राजा को व्यवस्थायें भी देनी पड़ती हैं। वस्तुतः व्यवस्था देने का काम पहले भी राज्य का था। आज भी राज्य का ही है। वैदिक परम्परा में ऐसी व्यवस्था देने वालों में मनु प्रमुख हैं-जो कि इक्ष्वाकु वंश के प्रथम राजा थे। संयोग की बात है कि इक्ष्वाकु वंश का नामकरण जैन परम्परा के अनुसार ऋषभदेव के जीवन की उस घटना से जुड़ा है-जब उन्हें संन्यास लेने के बाद प्रथम भिक्षा के रूप में अक्षय तृतीया के दिन इक्षुरस दिया गया था।
___ऋषभदेव ने असि, मसि और कृषि का आविष्कार किया, जो आविष्कार सभ्य समाज की स्थापना का आधार बना। कृषि हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन है। मसि वितरण प्रणाली का संचालन करती है और असि अन्याय और अपराध का दमन करती है। एक प्रकार से ये तीनों आज भी हैं लेकिन अपने परिवर्तित रूप में। असि का स्थान आणविक अस्त्रों ने ले लिया है, मसि
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