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महाप्रज्ञ-दर्शन समानता के मूल्य का हनन करती है और वांछनीय नहीं है। छुआछूत जाति के आधार पर व्यक्ति और व्यक्ति में भेद करती है, इसलिए यह भी वांछनीय नहीं है। आज मानवाधिकारों पर बल दिया जाता है और कोई भी ऐसी व्यवस्था जो मानवाधिकारों के विरुद्ध हो, अवांछनीय मानी जाती है। विधायक मूल्य
. ये तो सामाजिक व्यवस्था में कुछ अवांछित तत्त्वों की चर्चा हुई, किंतु सामाजिक परिप्रेक्ष्य कुछ विधायक गुणों की भी अपेक्षा रखता है। मनुष्य अकेला नहीं है। समूह में रहता है। दूसरों के साथ उसका कैसा संबंध हो-यह एक सामाजिक मूल्य है। देखा जाये तो जितने व्यक्तिनिष्ठ मूल्य हैं-उन सबका एक सामाजिक पक्ष भी है। उदाहरणतः अहिंसा को लें। वीतरागता अहिंसा का व्यक्तिगत पक्ष है, किंतु सबके प्रति सद्भाव अहिंसा का सामाजिक पक्ष है। सत्य का तो सामाजिक पक्ष ही मुख्य है, क्योंकि असत्य के द्वारा हम दूसरों को ही धोखा देते हैं। असत्य भी मुख्यतः सामाजिक है। ब्रह्मचर्य आत्मसंयम के रूप में व्यक्तिगत है किंतु व्यभिचार के विरोध में होने के कारण सामाजिक भी है। अपरिग्रह का, मूर्छा के अभाव का पक्ष व्यक्तिगत है, किंतु शोषण के निषेध का पक्ष सामाजिक है। इस प्रकार हम व्यक्तिगत मूल्यों के सामाजिक पक्ष को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते। शिक्षा और समाज
आचार्य महाप्रज्ञ ने समाज निर्माण के लिए शिक्षा के महत्त्व को सर्वोपरि माना और शिक्षा का एक नया आयाम "जीवन विज्ञान" विकसित किया। विद्या की इस विधा में उन्होंने यह माना कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास है। सर्वांगीण विकास का अर्थ है कि व्यक्ति केवल व्यक्ति ही नहीं है, वह समाज का एक भाग भी है। इसलिए उसके लिए केवल आध्यात्मिक या नैतिक मूल्य ही पर्याप्त नहीं है, सामाजिक मूल्य भी आवश्यक है। इस दृष्टि से मूल्यों को पांच भागों में बांटकर कुल सोलह मूल्यों का वर्गीकरण एक नये प्रकार से किया गया१. सामाजिक मूल्य-कर्तव्यनिष्ठा, स्वावलम्बन। २. बौद्धिक मूल्य-सत्य, समन्वय, सम्प्रदाय-निरपेक्षता, मानवीय एकता। ३. नैतिक मूल्य-प्रामाणिकता, करुणा, सह-अस्तित्व । ४. मानसिक मूल्य-मानसिक संतुलन, धैर्य । ५. आध्यात्मिक मूल्य-अनासक्ति, सहिष्णुता, मृदुता, अभय, आत्मानुशासन ।
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