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सामाजिक-आर्थिक तंत्र के चार मॉडल
विश्व में तीन संस्कृतियों की चर्चा प्रासंगिक है। व्यक्ति को केन्द्र में रखने वाली संस्कृति भारतीय संस्कृति है। परिवार को इकाई मानकर चलने वाली संस्कृति चीन की है और समाज को मुख्य मानकर चलने वाली संस्कृति यूनान की है। भारतीय संस्कृति में उपनिषद्, पाली त्रिपिटक और जैन आगम व्यक्तिनिष्ठ संस्कृति के प्रतिनिधि ग्रंथ हैं। वेद, स्मृति और पुराण समाजनिष्ठ संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं। सामाजिक दृष्टि का उद्देश्य
आधुनिक भारत का जब पश्चिम से सम्पर्क हुआ तो यहां भी समाज की चिंता प्रारम्भ हुई। अंग्रेजों के सम्पर्क में आने के बाद जिन सम्प्रदायों का उदय हुआ उन सबमें समाज की अवधारणा बलवती रही। यह इस बात से स्पष्ट होता है कि अंग्रेज के सम्पर्क में आने से पहले इस देश में सम्प्रदाय, धर्म, पंथ इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता था, किंतु अंग्रेजों के आने के बाद जो सम्प्रदाय अस्तित्व में आये उन सबके नामकरण में समाज शब्द आ गया यथा आर्यसमाज, ब्रह्मसमाज, देवसमाज, प्रार्थनासमाज इत्यादि। पुराने सम्प्रदायों ने भी समाज शब्द का प्रयोग प्रारम्भ किया-हिन्दु समाज, जैन समाज इत्यादि। व्यक्ति और समाज
___ व्यक्तिपरक दृष्टि का अर्थ यह है कि मूल इकाई व्यक्ति है। सुधरता या बिगड़ता व्यक्ति है। समाज तो व्यक्तियों का समूह है। "सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से राष्ट्र स्वयं सुधरेगा” यह प्रश्न दर्शन की उस समस्या से जुड़ा है जिसके अन्तर्गत इस बात पर विचार किया जाता है कि अवयवी अवयव से भिन्न है या अवयवों के समूह मात्र का नाम अवयवी है। नैयायिक अवयवी की
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