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महाप्रज्ञ उवाच
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होने से बार-बार गुस्सा करता है और उत्तेजना में आ जाता है। जो आदमी बार-बार क्रोध करेगा, उसका पाचक रस बिगड़ जाएगा, हृदय की गति बिगड़ जाएगी और फेफड़ा कमजोर हो जाएगा।
वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि ध्यान, व्यायाम और आहार का संतुलन-ये तीन ऐसे उपाय हैं, जिनसे बुढ़ापे को रोका जा सकता है। अगर आसन और प्राणायाम का नियमित प्रयोग चलता रहे, तो शायद आने वाले अनेक बीमारियों और बुढ़ापे के कष्टों से आदमी बच सकता है।
शरीर-प्रेक्षा और श्वास-प्रेक्षा की जाए तो इस प्रकार की चेतना का निर्माण हो सकता है कि बहुत सारे मानसिक आघातों से आदमी बच सकता है। यदि कायोत्सर्ग के प्रयोग निरन्तर चलें, तो भावनात्मक समस्याओं से बच सकता है और काफी समस्याओं से अपने आपको बचा सकता है।
शरीर-प्रेक्षा की सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण निष्पत्ति है-चेतना के साथ जुड़ी हुई आस्था का निर्माण | उस आस्था के आधार पर संचालित होने वाली नई आदतों का निर्माण।
शरीर-प्रेक्षा के द्वारा हम विषों और मलों को दूर कर चेतना का परिष्कार करें। शरीर में जब मल जमा हो जाते हैं, तो सारा शरीर मलमय बन जाता है। जब हमारा उत्सर्जन तंत्र अवरुद्ध हो जाता है, तब शरीर में विष जमा होते हैं। जब मल-निष्कासन का मार्ग साफ रहता है, तब जीवन की यात्रा निर्बाध रूप से चलती रहती है। शरीर-प्रेक्षा उत्सर्जन-तंत्र को सक्रिय एवं सक्षम बनाए रखने में सहायक होती है, जिससे कि शरीर का विष विसर्जित हो जाए।
___ जो घटनाएं घटित होने वाली हैं, वे अवश्य घटेंगी, उनका हमें बोध भी होगा, किंतु उनके साथ न सुख आएगा, न दुःख। शरीर-प्रेक्षा के साधक केवल जानते रहेंगे, कर्त्तव्य का पालन करते रहेंगे, चिंतन करेंगे किंतु चिंतित नहीं बनेंगे। संताप को इकट्ठा नहीं करेंगे, संतप्त नही बनेंगे।
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