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महाप्रज्ञ - दर्शन
कोई चिंतन करे । अशरीरी चिंतन, अशरीरी वाणी और अशरीरी श्वास कभी भी उपलब्ध नहीं होगा। यह सब शरीर के द्वारा ही घटित हो रहा है। इस परम सत्य को जान लेने के बाद उस उत्तर के लिए जिज्ञासा शेष नहीं रहेगी कि चित्त की शुद्धि के लिए शरीर की स्थिरता क्यों जरूरी है? जब शरीर चंचल होता है तो मन की चेतना बाहर जाती है। शरीर जैसे ही स्थिर हुआ, निश्चल हुआ, शांत वातावरण, इन्द्रिय चेतना लौट आती है, मानसिक चेतना भी लौट आती है । प्रतिक्रमण शुरू हो जाता है। चेतना का बाहर जाना अतिक्रमण है, चेतना का फिर अपने भीतर आ जाना प्रतिक्रमण है । प्रतिक्रमण अपने आप शुरू हो जाता है।
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हम जब प्रतिक्रमण की स्थिति में होते हैं, चेतना तब भीतर लौटती है और बाहर से चेतना का सम्पर्क टूटता है । चित्त जब भीतर ही देखने लगता है, अपनी सारी शक्ति का नियोजन भीतर होता है, उस समय सबसे पहले श्वास का दर्शन होता है, सहज भाव से श्वासप्रेक्षा हो जाती है। जरूरत नहीं सुझाव की । कुछ कहने की जरूरत नहीं, चेतना भीतर लौटी, पहला कार्य होगा श्वास दर्शन । अपने आप पता चलेगा कि इस शरीर के भीतर एक घटना घट रही है। पहली घटना - शरीर स्थिर, शांत किंतु श्वास चल रहा है, बहुत मंद गति से चल रहा है। दीर्घश्वास अपने आप हो जाएगा। दीर्घश्वास, मंदश्वास - यह सहज नियम है शरीर का । जब शरीर की चंचलता होगी, श्वास छोटा होगा । शरीर की स्थिरता होगी श्वास लम्बा हो जाएगा, दीर्घ हो जाएगा। श्वास की स्थिरता शरीर की स्थिरता पर निर्भर है। शरीर जितना चंचल होता है, श्वास की गति बढ़ती जाती है, संख्या बढ़ती जाती है, श्वास छोटा होता चला जाता है । एक मिनट में १७ श्वास लेने वाला व्यक्ति जब शरीर की चंचलता को बढ़ाता है, तो श्वास की संख्या भी २०, २४, ३० से आगे बढ़ती चली जाती है। ६०, ७० तक भी चली जाती है। शरीर शांत हुआ, श्वास की संख्या कम होने लग जाएगी, लम्बाई बढ़ जायेगी, श्वास अपने आप मंद हो जाएगा। यह श्वास की मंदता का नियम स्थिरता के साथ जुड़ा हुआ है 1
शरीर प्रेक्षा की बात सुनकर आपको अटपटा सा लगता होगा। आए थे ध्यान सीखने और हमें सिखाया जा रहा है शरीर को देखना । ललाट और भौहों को देखो, आंख और कान देखो। यह सब एक कांच में देखा जा सकता है। दर्पण में शरीर को देखने वाले चमड़ी को देखते हैं, रंगरूप को देखते हैं, आकृति को देखते हैं, बस इतना ही देख पाते हैं। क्या कभी आपने चमड़ी के भीतर क्या है, देखा है ? क्या प्राण के प्रवाह से होने वाले प्रकम्पनों और स्पंदनों
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