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महाप्रज्ञ-दर्शन
चेतना का जड़ पर प्रभाव
प्राणों पर भावों का प्रभाव गोचर है। क्रोध में हमारा श्वास तेज चलने लगता है। सम्भोग के समय भी श्वासों की गति तीव्र हो जाती है। यह श्वासों की गति केवल प्राणों तक ही सीमित नहीं रहती। यह पूरे शरीर की रासायनिक क्रिया को प्रभावित करती है। इस प्रकार चेतना शरीर का निर्माण करती रहती है। जैन परम्परा कहती है कि जब भी कोई भाव हममें उत्पन्न होता है, तत्काल प्रकृति में भी एक प्रतिक्रिया होती है। हमारे भाव सीधे प्रकृति को स्थूल स्तर पर प्रभावित नहीं करते। प्रकृति का एक सूक्ष्मतम रूप है जिसे कर्म से प्रभावित होने के कारण कार्मण वर्गणा कहा गया है। अच्छे या बुरे भाव अथवा कर्म के कारण तदनुरूप कार्मण वर्गणा हमारी चेतना से सम्बद्ध हो जाती है। बदले में कालान्तर में यह कार्मण वर्गणा हमारे भावों को तथा क्रियाओं को प्रभावित करती है।
जिसे हम बन्धन कहते हैं, वह केवल मानसिक नहीं है, भौतिक भी है। प्रकृति की सूक्ष्मतम कार्मण वर्गणाओं से बना कार्मण शरीर चेतना से क्षेत्रीय तथा भावात्मक दोनों अर्थों में चिपटकर चेतना की शुद्धता को ढक लेता है। यही दुःख का कारण बनता है-आश्रवो भवहेतुः स्यात्। यदि इन कार्मण वर्गणाओं का आना रोका जा सके तो हम अपने शुद्ध रूप में स्थिर हो सकते हैं-संवरो मोक्षकारणम् । जैन साधना का मूल सूत्र तो यही है, शेष सब इसका विस्तार है
आश्रवो भवहेतुः स्यात् . संवरो मोक्षकारणम्।
इतीयमाहतीदृष्टिरन्यदस्याः प्रपञ्चनम् ॥ शरीर के संबंध में विज्ञान ने सबसे महत्त्वपूर्ण जानकारी यही दी है कि शरीर की कोई भी क्रिया चेतना की सहायता के बिना नहीं होती है। उदाहरण के लिए पाचन की क्रिया को लें। पाचन क्रिया अन्न से रक्त, मांस, मज्जा, अस्थि, वीर्य सब कुछ बना देती है। अन्न से बनने वाले ये पदार्थ केवल शरीर के अन्दर ही बन सकते हैं। शरीर के बाहर अन्न से हम रक्त की एक बूंद भी प्रयोगशाला में नहीं बना सकते हैं। अन्न से रक्त कैसे बनता है-यह प्रक्रिया हमें मालूम है किंतु उस प्रक्रिया को शरीर के बाहर हम प्रयोगशाला में इसलिए नहीं दोहरा सकते कि शरीर के बाहर चेतना उपलब्ध नहीं है। यदि शरीर के सभी घटकों का निर्माण चेतना कर रही है, भले ही वह निर्माण अन्न से हो रहा हो, तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि शरीर के निर्माण में केवल यही महत्त्वपूर्ण नहीं है कि हम खाते क्या हैं अपितु यह भी महत्त्वपूर्ण है कि जो कुछ हम खाते हैं, चेतना उसका उपयोग किस प्रकार करती है। चेतना अपना कार्य किस
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