SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाप्रज्ञ-जैनेन्द्र-सम्वाद ३४५ मुनिश्री- मैंने तो पहले ही कहा था, स्व-द्रव्य के साथ योग और पर-द्रव्य के साथ अयोग। कोरा अयोग या विच्छेद नहीं कहा था। छोड़ते जाओ, छोड़ते जाओ, यह समझ में आता है पर विस्तार करते जाओ, यह भाषा समझने में कठिनाई है। इसका व्यावहारिक रूप क्या है? जैनेन्द्र- आचार्य तुलसी के प्रति आपकी श्रद्धा है। तुलसीजी में आपका लीन होना सरल है। जैनेन्द्र जैनेन्द्र में लीन हो जाए, यह कठिन लगता है। अपने से दूसरों में लीन होना विस्तार है और वह सरल भी है। मुनिश्री- स्वलीन या परलीन यह भाषा-भेद है। भाषा कोई सत्य नहीं है। सत्य जहाँ पहुँचता है, वहाँ पहुँचता है। जैनेन्द्र- आत्मा के नाम पर अहं की साधना होने से धर्म अधर्म बन जाता है। मुनिश्री- अहं शब्द एक है पर इसके दो रूप हैं। अहं अस्मित्व का सूचक हो तो वह अधर्म हो सकता है पर अस्तित्व का सूचक हो तो वह अधर्म कैसे होगा ? जैनेन्द्र- ध्यान में प्रवृत्ति-शून्यता या अहं की वृद्धि का खतरा है। मुनिश्री- ध्यान में सहज आनन्द की अनुभूति होती है। मैं अपने में देखता हूँ। ध्यान के लिए कुछ समय लगाता हूँ, फिर भी मेरी प्रवृत्ति कम नहीं हुई है और न मुझे अहं सताता है, प्रत्युत आनन्द का अनुभव कर रहा हूँ| इसलिए मुझे लगता है कि ध्यान कोई खतरा नहीं है। जहाँ आनन्द नहीं मिलता, वहाँ ध्यान की प्रक्रिया में गलती हो सकती है। जैनेन्द्र- मेरे जीवन में कम से कम एक दर्जन व्यक्ति आए। दो-दो घंटे ध्यान करते थे, फिर भी उनका मन बिखर रहा है। मुनिश्री– प्रक्रिया में कहीं गलती हो सकती है, अन्यथा ध्यान से आनन्द ही मिलता है, मन बिखरता नहीं। जैनेन्द्र- क्या मुक्ति अभावात्मक स्थिति है ? मुनिश्री- नहीं भावात्मक है। वहाँ ससीम सुख की निवृत्ति होती है तो असीम सुख की उपलब्धि होती है। परमात्मा का आनन्द अनन्त है। अचल है, अक्षर है। यहाँ के सुख क्षरणशील हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy